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काव्यलिंग अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण
काव्यलिंग अलंकार की परिभाषा
जहाँ किसी उक्ति के समर्थन का कारण बताया जाय, वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है। किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते है। यहाँ किसी बात के समर्थन में कोई न कोई युक्ति या कारण अवश्य दिया जाता है। बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जायेंगी।
उदाहरण – कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय
उहि खाए बौरात नर, इहि पाए बौराय।
स्पष्टीकरण – धतूरा खाने से नशा होता है, पर सुवर्ण पाने से भी नशा होता है। यह एक अजीब बात है। जिस सोने को पाकर ही लोग उन्मत्त हो जाते हैं, उसे खाने पर नशा करने वाले धतूरे से सौ गुना क्या, हजार गुना अधिक मादक कहा जाये तो भी अनुचित नहीं। यहाँ सम्पूर्ण उत्तरार्द्ध का पूर्वार्द्धगत् अर्थ की निष्पत्ति का कारण है। अतः यहाँ काव्यलिंग अलंकार है।
उदाहरण – ‘मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय ।’
स्पष्टीकरण – यहाँ प्रशंसा की समर्थता का कारण दूसरे वाक्य में कहा गया है ।
उदाहरण – ‘स्याम गौर किमि कहीं बखानी ।
गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥”
स्पष्टीकरण – इसमें पूर्वाद्ध का समर्थन उत्तरार्द्ध के वाक्यार्थ में प्रस्तुत युक्ति के द्वारा किया है।
उदाहरण – श्री पुर में, वन मध्य हौं, तू मग करी अनीति।
कहि मुंदरी! अब तियन की को करिहै परतीति।।
★★★ निवेदन ★★★
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