कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध / essay on Krishna Janmashtami in hindi

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कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध / essay on Krishna Janmashtami in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) मनाने का कारण, (3) जन्माष्टमी मनाने का तरीका, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना-

जन्माष्टमी का त्यौहार हमारे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार रक्षाबन्धन, होली, दीपावली, दशहरा आदि की तरह विशुद्ध धार्मिक त्यौहार है। यह पवित्रता, स्वच्छता और शुद्धता का प्रतीक है। इस त्यौहार से श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ भावों का प्रादुर्भाव होता है। मुख्य रूप से यह त्यौहार आत्म-विश्वास और आत्म-चेतना का प्रेरक और संवाहक है! 

 मनाने का कारण –

द्वापर युग में मथुरा का राजा कंस बहुत ही अत्याचारी और दुराचारी था। उसने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था और स्वयं राजा बन बैठा था। जब वह अपनी बहिन देवकी को जिसको वह बहुत प्यार करता था, उसके विवाह के पश्चात् विदा करने स्वयं जा रहा था. तभी आकाशवाणी हुई कि जिस बहिन को तू इतने प्यार से विदा करने जा रहा है, उसी की आठवीं सन्तान के हाथों तेरा वध होगा। कंस ने रथ रोककर बहिन को तलवार से मौत के घाट उतारना चाहा तो देवकी के पति वासुदेव ने समझाया कि बहिन की हत्या करना महापाप है। तुमको बहिन से तो कोई खतरा नहीं, इसकी आठवीं सन्तान से ही तो खतरा है। अतः हम अपनी सन्तानों को तुम्हें सौंपते जायेंगे। कंस ने अपने बहिन और बहनोई को कारावास में बन्द कर दिया। और सब सन्तानों को जन्म लेते ही मार डालने का निश्चय किया। यह क्रम चलता रहा। कंस ने एक-एक करके सात बच्चों को मार डाला। अन्त में भाद्रपद मास की अष्टमी की अन्धेरी आधी रात को आठवें बालक का जन्म हुआ। ये भगवान कृष्ण थे। दैवीय शक्ति के प्रभाव से कृष्ण के जन्म के समय कारागार के पहरेदार सो गये और कारागार के फाटक खुल गये। आकाशवाणी सुनकर वासुदेव बालक कृष्ण को गोकुल में नन्द-यशोदा के घर छोड़ आये। बदले में नन्द की पुत्री को आकाशवाणी के अनुसार कंस को दे दिया। कंस ने पुत्र या पुत्री का विचार किये बिना क्रोध और भय के कारण उस कन्या को जैसे ही

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पटकने का प्रयत्न किया, वैसे ही वह कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाशवाणी करती हुई आकाश में चली गई— “हे कंस, जिसके भय से तुमने मुझे मारना चाहा है, वह जन्म ले चुका है और गोकुल पहुँच चुका है।” कंस इस आकाशवाणी को सुनकर सहम गया। क्रोध से विक्षिप्त होकर उसने आदेश दिया कि आज जो भी बच्चे पैदा हुए हैं; उन्हें मार डालो। ऐसा ही किया गया। उसने गोकुल में अनेक मायावी राक्षसों को भेजकर कृष्ण को मार डालने का भरसक प्रयत्न किया, लेकिन कृष्ण तो परब्रह्म परमेश्वर के अवतार थे। इसलिए उनका बाल-बांका न हो सका। इसके विपरीत श्रीकृष्ण ने न केवल उन मायावी राक्षसों को मार डाला, बल्कि कंस की ही जीवन लीला समाप्त कर दी।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। अत्याचारी कंस से प्रजा की रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण योगी, दार्शनिक और कूटनीतिज्ञ राजा थे। आपने भारत भूमि से पापियों का नाश करके धर्म की स्थापना की थी। इसी महापुरुष के जन्मदिन का गौरव जन्माष्टमी को प्राप्त है। भारतीय जन-जीवन में इस महान पर्व का बहुत ही महत्त्व है।

जन्माष्टमी मनाने का तरीका-

 जन्माष्टमी के त्यौहार को मनाने का तरीका बहुत ही रोचक और सहज है। इस त्यौहार को मनाने के लिए सभी श्रद्धालु प्रातःकाल ही अपने घरों की सफाई करके उसे धार्मिक प्रतीकों द्वारा सजाते हैं।

विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्य करते हैं और व्रत रखते हुए श्रीकृष्ण लीला गान और श्रीकृष्ण कीर्तन करते रहते हैं। भगवान की मूर्ति या चित्र पर धूप, दीप और फल आदि चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की परम लीला की झाँकी जन्माष्टमी के दिन मन्दिरों और घरों में प्रायः श्रद्धालुओं द्वारा सजाई जाती करके अर्द्धरात्रि के समय चन्द्र दर्शन हैं। प्रायः सभी श्रद्धालु दिन में व्रत रखकर स्वच्छ फल या पेय पदार्थ का सेवन पश्चात् ठीक 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का आनन्द लेते हुए प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण करते हैं। इसके बाद फिर श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करते हुए निद्रा का आनन्द लेते हैं। कुछ लोग रात्रि भर जागरण करते हैं।

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भगवान कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा में द्वारिकाधीश के मन्दिर में कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र और जीवन झाँकी की रूपरेखा के द्वारा हमें उनके स्वरूप के विविध दर्शन और ज्ञान प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण के लोक-रंजक, लोक-संस्थापक और लोक-प्रतिनिधित्व स्वरूप का भी हमें ज्ञान और दर्शन जन्माष्टमी के त्यौहार के मनाने से सहज ही प्राप्त हो जाता है।

उपसंहार-

जन्माष्टमी का त्यौहार आर्थिक और कृषि की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व का है। इस दृष्टि से गौपालन और गौरक्षा की भावना पुष्ट होती है। इससे हमारे मन और अन्तःकरण में श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण जीवन की झाँकी झलकने लगती है। हम आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सबल होने के लिए नये-नये संकल्पों को दुहराने लगते हैं। इस त्यौहार को मनाने से हमें नयी स्फूर्ति, प्रेरणा, उत्साह और नवीन आशाओं के प्रति जागृति होती है। अतएव हमें जन्माष्टमी के इस पावन पर्व को बहुत ही सादगी और पवित्रता के साथ मनाना चाहिए।

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