हिंदी व्याकरण विभिन्न परीक्षाओं जैसे UPTET,CTET, SUPER TET,UP POLICE,लेखपाल,RO/ARO,PCS,LOWER PCS,UPSSSC तथा प्रदेशों की अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी विषय है। हमारी वेबसाइट istudymaster.com आपको हिंदी व्याकरण के समस्त टॉपिक के नोट्स उपलब्ध कराएगी। दोस्तों हिंदी व्याकरण की इस श्रृंखला में आज का टॉपिक क्रिया की परिभाषा एवं प्रकार / क्रिया के भेद प्रयोग और उदाहरण है। हम आशा करते है कि इस टॉपिक से जुड़ी आपकी सारी समस्याएं समाप्त हो जाएगी।
क्रिया की परिभाषा एवं प्रकार / क्रिया के भेद प्रयोग और उदाहरण
क्रिया की परिभाषा-जिन शब्दों से किसी कार्य के करने, होने अथवा किसी स्थिति का बोध हो, उन्हें क्रिया कहते हैं।
उदाहरणतया-
1. वह किसान है। (स्थिति)
2. वह गीत गाता है। (क्रिया का करना)
3. वर्षा हो रही है। (क्रिया का होना)
क्रिया के प्रकार / क्रिया के भेद
क्रिया के मुख्यतः दो भेद हैं-अकर्मक और सकर्मक।
(क) अकर्मक क्रिया
जिस क्रिया का फल कर्म पर नहीं, कर्ता पर पड़ता है, उसे ‘अकर्मक क्रिया’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, अकर्मक क्रिया में किसी कर्म की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरणतया –
मोर नाचता है।
मोहन हँसता है।
इनमें क्रमशः ‘नाचना’ और ‘हँसना’ क्रिया में किसी कर्म की आवश्यकता नहीं है। ये सीधे-सीधे अपने कर्ता-पदों से संबंधित हैं। ‘नाचने’ और ‘हँसने’ का आधार क्रमशः ‘मोर’ और ‘मोहन’ हैं ।
कुछ अन्य अकर्मक क्रियाएँ इस प्रकार हैं-
सोना, जागना, उठना, बैठना, हँसना, रोना, आना, जाना, उड़ना, बहना, उछलना, कूदना, लेटना, उगना, अकड़ना, डूबना, उतरना, गिरना, बचना, पलना, तड़पना, दौड़ना, भागना, बढ़ना।
अकर्मक क्रियाओं के भेद
इसके तीन भेद होते हैं।
1. स्थित्यर्थक/अवस्थाबोधक पूर्ण अकर्मक क्रियाएँ-यह क्रिया स्थिर अवस्था में होती है तथा बिना पूरक या कर्म के भी पूर्ण अर्थ देती है।
जैसे-
ईश्वर है।
शाम सो रहा है।
नरेश लेटा था।
मोहन अकड़ता है।
बच्चा उठा।
साधू बैठा था।
ये अकर्मक क्रियाएँ स्थिति, अवस्था, अनुमति अथवा दशा का बोध कराती हैं।
2. गत्यर्थक (पूर्ण) अकर्मक क्रियाएँ-ये क्रियाएँ बिना कर्म या पूरक के पूर्ण अर्थ देती हैं तथा इनमें कर्ता गतिमान रहता है।
जैसे-
सोहन दिल्ली जा रहा था।
चिड़िया उड़ रही है।
वह खुशी से उछल पड़ा।
ध्यातव्य है कि ये क्रियाएँ बिना किसी कर्म या पूरक के पूर्ण अर्थ व्यक्त कर रही हैं।
3. अपूर्ण अकर्मक क्रिया-इन क्रियाओं में किसी कर्म की तो आवश्यकता नहीं होती, परंतु किसी अन्य पूरक की अवश्य आवश्यकता होती है।
जैसे-
मोहन स्वस्थ है।
यहाँ ‘स्वस्थ’ पूरक है। ‘है’ क्रिया अकर्मक है। ‘है’ का प्रभाव सीधे कर्ता पर पड़ रहा है। बनना, निकलना, होना आदि।
ऐसी अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ हैं जो किसी-न-किसी पूरक की अपेक्षा रखती हैं। अन्य कुछ उदाहरण देखिए-
बनना – वह डॉक्टर बनेगा।
होना – वह बीमार हो गया।
निकला – वह चालाक निकला।
(ख) सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है, तथा जिसके प्रयोग में कर्म की अनिवार्यता बनी रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।
उदाहरणतया-
राम ने बेर खाए।
यहाँ ‘खाए’ क्रिया का प्रभाव ‘बेर’ पर पड़ रहा है। ‘बेर’ कर्म के बिना ‘खाए’ क्रिया पूर्ण स्पष्ट अर्थ नहीं देती। अतः ‘खाए’ सकर्मक क्रिया है। कुछ अन्य उदाहरण देखिए-
अनुराग ने फल खरीदे।
राम ने रावण को मारा।
बच्चे सीरियल देख रहे हैं।
कुछ वाक्यों में ‘कर्म’ उपस्थित नहीं होता, परंतु कर्म की आवश्यकता बनी रहती है। ऐसी क्रिया भी सकर्मक कहलाती है।
जैसे-
राम पढ़ता है।
सुमेधा खेल रही है।
स्पष्टीकरण-राम ‘क्या’ पढ़ रहा है और सुमेधा ‘क्या’ खेल रही है-ये आवश्यकताएँ बनी हुई हैं। इसलिए कर्म के न होने पर भी ये सकर्मक क्रियाएँ हैं। परंतु इनका प्रयोग अकर्मक क्रिया की भाँति हुआ है।
सकर्मक क्रियाओं के भेद
इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं-
1. पूर्ण एककर्मक क्रियाएँ-इन्हें पूर्ण एककर्मक क्रियाएँ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये एक कर्म के साथ जुड़कर पूरा अर्थ प्रदान करती हैं। यथा मनोरमा पुस्तक पढ़ रही है।
इसमें ‘पढ़ रही है’ क्रिया के साथ पुस्तक (कर्म) जुड़ने से वाछित अर्थ प्रकट होता है। एक ही कर्म होने के कारण इसे ‘एककर्मक’ तथा ‘पूर्ण’ अर्थ प्रदान करने में सक्षम होने के कारण ‘पूर्ण’ कहा जाता है।
अन्य उदाहरण-
वाल्मीकि ने रामायण लिखी।
मोहन ने टॉफी खरीदी।
मोहिनी ने वीडियो फिल्म देखी।
ममता बर्तन धो रही है।
बहन खाना बना रही है।
बंदर केले खा रहे हैं।
स्पष्टीकरण- उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त सभी कियाएँ एक कर्म की अपेक्षा रखती हैं। उनके बिना ये वाक्य अधूरे रहते हैं।
उदाहरणतया-
वाल्मीकि ने लिखी क्या ? – रामायण
मोहन ने खरीदी क्या ? – टॉफी
मोहिनी ने देखी क्या ? – बीडियो फिल्म
ममता धो रही है क्या ? – बर्तन
बहन बना रही है क्या ? – खाना
बंदर खा रहे हैं क्या ? – केले
2. पूर्ण द्विकर्मक क्रियाएँ-जो क्रियाएँ एक नहीं, दो कर्मों के साथ संयुक्त होने पर पूर्ण अर्थ प्रदान करती हैं, उन्हें पूर्ण द्विकर्मक क्रियाएँ कहा जाता है। जैसे-
मालिक ने नौकर को पानी दिया।
इसमें ‘दिया क्रिया के दो कर्म हैं-नौकर (सजीव) तथा पानी (निर्जीव) ।अन्य उदाहरण-
1. माला ने मोहन को पुस्तक दी।
2. मैंने अपने मित्र की भरपूर सहायता की।
3. नौकर ने कुत्ते को दूध पिलाया।
4. पिताजी ने हमें कुछ पैसे दिए।
इन वाक्यों में प्रयुक्त प्रत्येक क्रिया के दो-दो कर्म हैं-
1. ‘दी’ क्रिया के कर्म-मोहन और पुस्तक।
2. ‘की’ क्रिया के कर्म-मित्र और सहायता
3. ‘पिलाया’ क्रिया के कर्म-कुत्ता और दूध।
4. ‘दिए क्रिया के कर्म-हमें और पैसे।
अतः ये सभी क्रियाएँ द्विकर्मक हैं।
मुख्य कर्म और गौण कर्म-
प्रायः मुख्य कर्म-
1. क्रिया के समीप रहता है।
2. विभक्ति-रहित होता है।
3. अप्राणिवाचक होता है।
इसके विपरीत गोण कर्म प्राय:-
1. क्रिया से अपेक्षाकृत दूर रहता है।
2. विभक्ति सहित होता है।
3. प्राणिवाचक होता है।
ध्यान देने योग्य तथ्य है कि कुछ अकर्मक क्रियाओं को प्रेरणार्धक बनाकर सकर्मक बनाया जाता है, तथा सकर्मक क्रियाओं को प्रथम या द्वितीय प्रेरणार्थक बनाकर द्विकर्मक बनाया जाता है।
उदाहरणतया-
डूबना (अकर्मक) से डुबवाना और डुबाना (सकर्मक)
पढ़ना (सकर्मक) से पढ़ाना या पढ़वाना (द्विकर्मक)
इसका विस्तृत वर्णन आगे देखें ‘अकर्मक से सकर्मक बनाना’ तथा ‘सकर्मक से प्रेरणार्थक बनाना’ शीर्षकों के अंतर्गत।
3. अपूर्ण सकर्मक क्रियाएँ-इन क्रियाओं में कर्म के होते हुए भी किसी पूरक के बिना अर्थ अधूरा रहता है। अतः कर्म से संबंधित किसी ‘पूरक’ की आवश्यकता बनी रहती है। यथा-
अमित श्याम को (मूर्ख) समझता है।
यहाँ ‘समझता है’ क्रिया का कर्म ‘श्याम’ उपस्थित है। फिर भी ‘मूर्ख’ (पूरक) के बिना अर्थ अपूर्ण है।
अन्य उदाहरण देखिए-
बिना पूरक पूरक सहित
में उसे मानता हूँ। मैं उसे समझदार मानता हूँ।
तुम मुझे अवश्य लिखना। तुम मुझे पत्र अवश्य लिखना।
वह बनकर दिखाएगा। वह प्रोफेसर बनकर दिखाएगा।
प्रायः चुनना,समझना, बनाना ऐसी क्रियाएँ हैं जिनमें कर्म के सिवा
की भी आवश्यकता बनी रहती है।
अकर्मक-सकर्मक (उभय) क्रियाएँ
कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक-दोनों रूपों में प्रयुक्त होती हैं।
उदाहरणतया-
पढ़ना (सकर्मक)-मोहन पुस्तक पढ़ रहा है।
पढ़ना (अकर्मक) – मोहन ! तुम्हें रोज़ पढ़ना चाहिए।
खेलना (सकर्मक)-बच्चे हॉकी खेलते हैं।
खेलना (अकर्मक) बच्चे रोज़ खेलते हैं।
‘हँसना’, ‘लड़ना’ आदि कुछ अकर्मक क्रियाएँ सजातीय कर्म आने पर सकर्मक रूप में प्रयुक्त होती हैं।
जैसे-
बाबर ने अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं।
वह मस्तानी चाल चल रहा था।
ऐंठना, खुजलाना आदि क्रियाओं के दोनों रूप मिलते हैं।
जैसे- पानी में रस्सी ऐंठती है। (अकर्मक)
नौकर रस्सी ऐंठ रहा है। (सकर्मक)
उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)
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अकर्मक क्रिया से सकर्मक क्रिया बनाना
कुछ अकर्मक क्रियाओं को प्रेरणार्थक बनाकर सकर्मक बनाया जाता है। उदाहरणतया-
हँसना (अकर्मक क्रिया) से हँसाना और हँसवाना सकर्मक क्रियाएँ बनीं। इनके वाक्य-प्रयोग देखिए-
◆ मैं हँसा (अकर्मक प्रयोग)
● मैं बच्चों को हँसाता हूँ। (सकर्मक प्रयोग, ‘बच्चों को कर्म)
◆ मैं बच्चों को जोकर से हँसवाता हूँ। (सकर्मक प्रयोग, ‘बच्चों को कर्म)
‘हँसाना’ को प्रेरणार्थक क्रिया कहेंगे।
‘हँसवाना’ द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया है। इसमें किसी अन्य की सहायता भी ली जाती है।
अकर्मक से सकर्मक तथा प्रेरणार्थक बनाना
(i) मूल धातु के अंत में ‘आ’ जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक और ‘वा’ जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया बनती है।
जैसे-
अकर्मक प्रथम प्रेरणार्थक (सकर्मक) द्वितीय प्रेरणार्थक (द्विकर्मक)
चलना चलाना चलवाना
ठहरना ठहराना ठहरवाना
दौड़ना दौड़ाना दौड़वाना
लड़ना लड़ाना लड़वाना
हँसना हँसाना हँसवाना
(ii) मूल क्रिया के प्रथम वर्ण ‘ए’, ‘ऐ’ का ‘इ’ हो जाता है। शेष परिवर्तन (1) के समान होता है।
जैसे-
खेलना खिलाना खिलवाना
बैठना बिठाना बिठवाना
लेटना लिटाना लिटवाना
(iii) मूल क्रिया के प्रथम वर्ण का दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है।
जैसे-
जागना जगाना जगवाना
डूबना डुबाना डुबवाना
भागना भगाना भगवाना
भीगना भिगाना भिगवाना
(iv) मूल धातुओं में कुछ परिवर्तन किया जाता है।
जैसे-
जाना भेजना भिजवाना
टूटना तोड़ना तुड़वाना
फटना फाड़ना फड़वाना
बिकना बेचना बिकवाना
रोना रुलाना रुलवाना
सोना सुलाना सुलवाना
कुछ क्रियाओं का सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं के रूप में वाक्य प्रयोग
(1) चलना
(अकर्मक) – मैं चलूँगा।
(सकर्मक) – मैं उसे चलाऊँगा।
(2) ठहरना
(अकर्मक) – मैं ठहर गया ।
(सकर्मक) – मैं उसे घर में ठहराऊँगा/ठहरवाऊँगा।
(3) लड़ना
(अकर्मक) – वह लड़ता है।
(सकर्मक) – वह सबको लड़ाता/लड़वाता है।
(4) खेलना
(अकर्मक) – वह खेल रहा है।
(सकर्मक) – वह बच्चे को खिला/खिलवा रहा है।
(5) घूमना
(अकर्मक) – हम घूमेंगे।
(सकर्मक) – हम उसे घुमाएँगे/घुमबाएँगे।
(6) बैठना
(अकर्मक) मैं बैठा हूँ।
(सकर्मक) – मैं उसे बिठाए/बिठवाए रहूँगा।
(7) लेटना
(अकर्मक) – मैं लेटा।
(सकर्मक) – मैंने बच्चे को लिटाया/लिटवाया।
(8) जागना
(अकर्मक) – मैं जागा।
(सकर्मक) – मैंने पत्नी को जगाया/जगवाया।
(9) डूबना
(अकर्मक) – मैं नहीं डूबा ।
(सकर्मक) – मैंने उसे नहीं डुबाया / डुबवाया ।
(10) जाना
(अकर्मक) – मैं दिल्ली गया ।
(सकर्मक) – मैंने उसे दिल्ली भेजा/भिजवाया।
(11) टूटना
(अकर्मक) – गिलास टूट गया।
(सकर्मक) – उसने गिलास तोड़/तुड़वा दिया।
(12) फटना
(अकर्मक) – गुब्बारा फट गया।
(सकर्मक) उसने गुब्बारा फाड़/फड़वा दिया।
संयुक्त क्रिया
हिंदी में क्रिया कभी एक पद द्वारा प्रकट होती है, कभी एक से अधिक पदों द्वारा। जैसे-
सचिन गया। (‘गया’ क्रिया एक पद वाली है)
सचिन खेल चुका है। (यहाँ क्रिया ‘खेल चुका है’ में तीन पद हैं।)
जब क्रिया एक से अधिक पदों में व्यक्त होती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
कुछ अन्य उदाहरण देखें-
मैं प्रायः आ जाया करता हूँ।
अब इसे जाने दिया जा सकता है।
तब मैं पढ़ रहा हूँगा।
इसे जाने दो।
स्पष्ट है कि सभी क्रियाएँ एकाधिक क्रिया-पदों के योग से बनी हैं, अतः ये संयुक्त क्रियाएँ हैं।
मुख्य क्रिया
जहाँ क्रिया एक पद में प्रकट होती है, वहाँ वही मुख्य क्रिया होती है।
जैसे-
‘सचिन गया’
यहाँ ‘गया’ ही मुख्य क्रिया है। यह ‘कर्ता’ (सचिन) के मुख्य व्यापार को व्यक्त कर रही है।
जिन स्थलों पर संयुक्त क्रिया होती है, वहाँ मुख्य क्रिया का निर्धारण इस प्रकार होता है-
● कर्ता या कर्म के मुख्य व्यापार को देखकर
◆ क्रिया-पद के अर्थ को देखकर
● यह प्रश्न किया जा सकता है कि ‘हुआ क्या है ?”
◇ प्रायः मुख्य क्रिया पहले आती है और सहायक क्रियाएँ बाद में आती हैं।
उदाहरणतया-
1. मैं प्रायः आ जाया करता हूँ।
यहाँ ‘मैं’ (कर्ता) का मुख्य व्यापार है-‘आना’ ।
प्रश्न करें-यहाँ कौन-सी क्रिया हुई है ? उत्तर है-‘आने की क्रिया’ ।
‘आ’ शेष क्रिया-पदों में सबसे पहले आया है।
इस प्रकार इस वाक्य में ‘आ’ मुख्य क्रिया है।
2. अब इसे जाने दिया जा सकता है।
इसे (कर्ता) का व्यापार है-‘जाना’ ।
कौन-सी क्रिया हुई है-‘जाने की’ ।
सबसे पहले कौन-सा क्रिया-पद है-‘जाने’ ।
अतः यहाँ ‘जाने’ (जाना) मुख्य क्रिया है।
3. तब मैं पढ़ रहा हूँगा।
मैं (कर्ता) का मुख्य व्यापार है-पढ़ना।
कौन-सी क्रिया हुई है-पढ़ना।
सबसे पहला क्रिया-पद है-पढ़।
अतः यहाँ ‘पढ़’ मुख्य क्रिया है।
4. वह सफाई कर चुकी है।
यहाँ ‘वह’ (कर्ता) का व्यापार है-सफाई करना’ न कि ‘सफाई’ ।
कौन-सी क्रिया हुई है-सफाई करना।
आरंभिक क्रिया-पद है-सफाई करना।
स्पष्टीकरण-केवल ‘सफाई’ क्रिया-पद नहीं है। यह ‘कर’ के साथ जुड़कर क्रिया का कार्य करती है। अतः यहाँ मुख्य
क्रिया ‘सफाई करना’ है। इसी तरह की अन्य कई मुख्य क्रियाएँ इस प्रकार हैं-आगमन किया, रिश्वत दी, याद करना, दाखिल होना, दिखाई देना, सुनाई पड़ना, मोल लेना, खरीद लेना।
सहायक क्रिया
सहायक क्रिया उसे कहते हैं जो क्रिया-पदबंध में मुख्य अर्थ न देकर उसकी सहायक हो। उसका काल, पक्ष, वृत्ति (मूड),वाच्य, रंगत (रंजकता) आदि प्रकट करती हो। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
पक्ष को प्रकट करने वाले कुछ उदाहरण-
उदाहरण पक्ष रूप-रचना
1.अब वह पढ़ने लगा है। आरंभद्योतक लगा
2. मोहन बहुत रो रहा है। सातत्यद्योतक रह
3. उसकी तेजी बढ़ती जा रही है। प्रगतिद्योतक जा + रह
4. में पुस्तक पढ़ चुका हूँ। पूर्णतायोतक चुक
5. मैं सवेरे सैर पर जाया करता हूँ। नित्यतायोतक कर
वृत्तियों को प्रकट करने वाले कुछ उदाहरण-
1. हमारे बंधु सुखी रहें। इच्छाघोतक एँ
2. मुझे दौड़ना पड़ता है। विवशताद्योतक ना+पड़
3. मैं अब पढ़ सकता हूँ। शक्यताद्योतक सक
4. भारत ने मैच जीत लिया होगा। संदेहघोतक लिया
वाच्य का बोध कराने वाली क्रिया के उदाहरण-
1. किताब पढ़ी जा रही है। कर्मवाच्य ई+जा+रह
2. उससे अब चला नहीं जाता। भाववाच्य आ+जा
रंजक क्रियाएँ
रंजक क्रियाएँ मुख्य क्रिया के अर्थ (Mood) में विशेष रंगत लाती हैं। उनमें विशेष छवि उत्पन्न करती हैं। हिंदी की कुछ प्रमुख रंजक क्रियाएँ निम्नलिखित हैं- आना, जाना, उठना, बैठना, लेना, देना, पड़ना, डालना, सकना, लगना, चाहना, रहना आदि।
उदाहरणतया-
(1) आना – कर आना, रो आना। (अनायासता)
वाक्य-प्रयोग – उसकी मूर्खतापूर्ण बातें सुनकर मुझे हँसी आ गई।
कप इतने सुंदर थे कि मैं खरीद ही आया।
(2) जाना – पी जाना, खा जाना, सो जाना। (शीघ्रता)
वाक्य प्रयोग – ठंड के मारे मैं कई कप चाय पी गया।
तुम्हारे कहने पर मैं आ जाऊँगा।
शादी पर वह कितने ही गुलाब जामुन खा जाता है।
(3) उठना – रो उठना, गा उठना, चिल्ला उठना। (आकस्मिकता)
वाक्य प्रयोग – मनोरम हरियाली देखकर मेरा मन गा उठा।
घोर अत्याचार देखकर मेरा मन चीत्कार कर उठा।
(4) बैठना – मार बैठा, खो बैठा, कर बैठा। (आकस्मिकता, अचानक कार्य करना)
वाक्य-प्रयोग – पतंग लूटने के चक्कर में शिरीष अपनी टाँग गँवा बैठा।
भावावेश में वह ऐसी गलती कर बैठा कि अब पीछा छुड़ाना कठिन हो रहा है।
(5) लेना – पी लेना, सो लेना, ले लेना। (क्रियापूर्णता, विवशता)
वाक्य-प्रयोग – मोहन ने दूध पी लिया है। (क्रियापूर्णता)
परिस्थिति को देखते हुए मैंने अपमान का घूँट पी लिया। (विवशता)
(6) देना – चल देना, रो देना, फेंक देना। (क्रियापूर्णता, विवशता)
वाक्य प्रयोग – बच्चों ने गुस्से में आकर फुटबाल फेंक दी।
उसने शरारती लड़के के मुँह पर तमाचा जड़ दिया।
(7) पड़ना – रो पड़ना, हँस पड़ना, चौंक पड़ना। (अनायासता)
वाक्य प्रयोग – महिमा की करुण दशा देखकर मेरा हृदय रो पड़ा।
जोकर की ऊट-पटाँग हरकतों को देखकर महागंभीर जगदीश भी हँस पड़ा।
(8) डालना – मार डालना, तोड़ डालना, काट डालना। (बलपूर्वक क्रिया करना)
वाक्य-प्रयोग – कृष्ण ने अत्याचारी कंस को मार डाला।
क्रुद्ध छात्रों ने सारी बसें जला डालीं।
(9) निकलना – चल निकलना।i
वाक्य प्रयोग – यह नया समाचार पत्र जल्दी ही चल निकला है।
संयुक्त क्रिया बनाने वाले तत्त्व
किसी क्रिया को संयुक्त क्रिया में बदलने के तत्त्व मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं
(1) वृत्ति
(2) काल
(3) पक्ष
(4) वाच्य
(1) वृत्ति/क्रियार्थ (Mood)
वृति या क्रियार्थ का तात्पर्य है- मनःस्थिति अथवा ‘मूड’ । क्रिया के जिस रूप से वक्ता या लेखक की मनःस्थिति का ज्ञान होता है, उसे वृत्ति कहते हैं। जैसे-आज्ञा, संदेह, संभावना, निश्चय, संकेत, अनुरोध आदि मुख्य वृत्तियाँ हैं।
1. आज्ञार्थ (Imperative Mood)- जिस क्रिया-रूप से आज्ञा, अनुरोध, आदेश आदि मनःस्थितियों का बोध हो, आज्ञार्थ कहते है।
जैसे-
सदा सत्य बोलना चाहिए। (उपदेश)
मेरी पुस्तक ले आओ। (आदेश)
कृपया समय बताइए। (अनुरोध)
2. इच्छार्थ- जिस क्रिया-रूप से इच्छा, कामना, आशीर्वाद, वरदान, शाप आदि स्थितियों का पता चले, उसे इच्छार्थ कहते हैं।
जैसे-
भगवान सबका भला करे ।
मैं कामना करता हूँ कि आप स्वस्थ रहें।
सुखी रहो।
3. निश्चयार्थ (Indicative Mood)-जिस क्रिया-रूप से कार्य होने की निश्चितता का बोध होता है, उसे निश्चयार्थ कहते हैं।
जैसे-
मोहन कापी पर लिख रहा है।
वह बाजार जा रहा है।
पुराने जमाने में लोग बड़ों का सम्मान करते थे।
4. संभावनार्थ (Subjunctive Mood) –क्रिया का जो रूप अनुमान, संभावना आदि का बोध कराए, उसे संभावनाथ कहते हैं।
जैसे-
संभवतः कल वर्षा हो। (संभावना)
शायद में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाऊँ। (अनुमान)
5. संदेहार्थ (Doubtful Mood)-क्रिया के जिस रूप से कार्य के पूरा होने का लगभग निश्चय हो, परंतु थोड़ा-सा संदेह भी बना हुआ हो, उसे संदेहार्थ कहते हैं।
जैसे-
बच्चे पढ़ रहे होंगे।
भारत ने पाकिस्तान पर जीत पक्की कर ली होगी।
वह पानी ला रहा होगा।
मेरा मित्र घर पहुँच गया होगा।
6. संकेतार्थ (Conditional Mood)-जिस वाक्य में दो क्रियाएँ इस प्रकार संयुक्त होती हैं कि एक क्रिया दूसरी क्रिया के लिए कारण बनकर प्रस्तुत होती है, वहाँ संकेतार्थ होता है।
जैसे-
पानी बरसेगा तो फसल होगी।
यहाँ फसल का होना पानी बरसने पर निर्भर है। पानी बरसना कारण है और फसल का उगना कार्य है।
अन्य उदाहरण-
यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य उत्तीर्ण होओगे।
यदि गाड़ी आती, तो मैं भी आ जाता।
वर्षा हुई तो जान में जान आई।
7. प्रश्नार्थ-जिस क्रिया-रूप में मन में जिज्ञासा या अनिर्णय की स्थिति प्रश्न के रूप में व्यक्त हो, उसे प्रश्नार्थ कहते हैं।
जैसे-
अब मैं क्या करूँ ?
न जाने क्या होगा ?
(2) पक्ष
हर कार्य किसी कालावधि के बीच होता है, जो आरंभ से लेकर अंत तक फैला हुआ होता है। इस अवधि में होने व कार्य-व्यापार को देखना पक्ष कहलाता है। दूसरे शब्दों में, क्रिया के जिस रूप से क्रिया की प्रक्रियागत अवस्था का बोध होता है, उसे क्रिया का पक्ष कहते हैं।
उदाहरणतया-
1. आरंभद्योतक पक्ष-इससे क्रिया के आरंभ की सूचना मिलती है।
जैसे-
अब वह रोटी खाने लगा है।
मोहन नौकरी पर जा रहा है।
2. सातत्यबोधक पक्ष-इससे क्रिया के वर्तमान में चालू रहने का बोध होता है।
जैसे-
लड़के अच्छा खेल दिखा रहे हैं।
गुरुजी कक्षा में पढ़ा रहे हैं।
3. प्रगतिबोधक पक्ष-इससे क्रिया में निरंतर बढ़ोतरी होने का बोध होता है। जैसे-
भीड़ बढ़ती ही जा रही है।
बाढ़ का पानी भरता ही चला जा रहा है।
4. पूर्णताबोधक पक्ष-इससे क्रिया के पूरी तरह समाप्त होने का बोध होता है।
जैसे-
मैंने गीता पढ़ ली है।
रवींद्रनाथ मँजा हुआ खिलाड़ी है।
रमेश दौड़ चुका है।
5. नित्यताबोधक अपूर्ण पक्ष-इससे क्रिया के नित्य होने का बोध होता है, परंतु वह पूरी नहीं होती।
जैसे-
मोहन डॉक्टर था।
सूर्य पूर्व दिशा से निकलता है।
6.आवृत्तिमूलक पक्ष- इसमें क्रिया सदा बनी रहती है।
जैसे-
श्याम स्कूल जाता है।
7. अभ्यासद्योतक पक्ष-इससे क्रिया के अभ्यासवश होने का बोध होता है। जैसे-
मोहन रोज प्रातः उठकर सैर को जाता है।
वह प्रायः गाने सुना करता है।
(3) काल (Tense)
क्रिया के जिस रूप से उसके होने के समय का बोध होता है, उसे ‘काल’ कहते हैं। काल के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं-
(1) वर्तमान काल (Present Tense)
(2) भूतकाल (Past Tense)
(3) भविष्यत् काल (Future Tense)
(1) वर्तमान काल (Present Tense)
जो समय चल रहा है, उसे वर्तमान काल कहते हैं। जैसे-
मोहन खेल रहा है।
(2) भूतकाल (Past Tense)
जो समय बीत चुका है, उसे भूतकाल कहते हैं।
जैसे- वर्षा हुई थी।
(3) भविष्यत् काल (Future Tense)
क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय का बोध हो, उसे भविष्यत् काल कहते हैं। जैसे- राम खेलेगा। कृष्ण वंशी बजाएगा। ‘गा’, ‘गे’, ‘गी’ इसके चिह्न हैं।
(4) वाच्य (Voice)
परिभाषा-वाच्य का अर्थ है-बोलने का विषय। अतः क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है अथवा भाव, उसे ‘वाच्य’ कहते हैं। उदाहरणतया- सोनिया खेल रही है। वाच्य के निम्नलिखित भेद होते हैं –
1. कर्तृवाच्य (Active voice)-इसमें कथन का केंद्र कर्ता होता है। कर्म गौण होता है। कर्तृवाच्य में क्रिया अकर्मक भी हो सकती है और सकर्मक भी।
जैसे- राजीव सोता है। (अकर्मक)
राजीव ‘पुस्तक’ पढ़ता है। (सकर्मक)
(2) कर्मवाच्य (Passive voice)-जिस वाक्य में केंद्र बिंदु कर्ता न होकर ‘कर्म’ हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। कर्म की प्रधानता के कारण या तो कर्ता का लोप हो जाता है; या कर्ता के बाद ‘से’ अथवा ‘द्वारा’ का प्रयोग होता है। जैसे- सोनिया से गीत गाया गया। [कर्ता (सोनिया) के बाद ‘से’ का प्रयोग।]
पतंग उड़ रही है। (कर्ता का लोप)
रोगी को दवाई दे दी गई है। (कर्ता का लोप)
इन तीनों वाक्यों में क्रमशः ‘गीत’, ‘पतंग’ और ‘दवाई’ कर्म हैं। यही अपने-अपने वाक्यों के केंद्र-बिंदु भी हैं। अतः ये कर्मवाच्य वाक्य हैं।
(3) भाववाच्य (Impersonal voice) – जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता न होकर अकर्मक क्रिया का भाव प्रमुख हो, उसे भाववाच्य कहते हैं। ऐसे वाक्यों में क्रिया सदा एकवचन, पुल्लिंग, अकर्मक तथा अन्य पुरुष में रहती है।
उदाहरणतया-
सोहन से चला नहीं जाता।
अब मुझसे सहा नहीं जाता।
इनमें क्रमशः ‘चला’ तथा ‘सहा’ क्रियाएँ ही प्रमुख हैं। अतः ये भाववाच्य के उदाहरण हैं।
★★★ निवेदन ★★★
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