विभिन्न अवस्थाओं में बालक में भाषायी विकास / language development in child in hindi

दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक विभिन्न अवस्थाओं में बालक में भाषायी विकास / language development in child in hindi है।

विभिन्न अवस्थाओं में बालक में भाषायी विकास / language development in child in hindi

विभिन्न अवस्थाओं में बालक में भाषायी विकास / language development in child in hindi
विभिन्न अवस्थाओं में बालक में भाषायी विकास / language development in child in hindi

बालक में भाषायी विकास

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर सुनकर व पड़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।

स्वीट महोदय के अनुसार- “ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।
एलिस के अनुसार-
“भाषा वह प्राथमिक माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज को प्रभावित करता है तथा समाज से प्रभावित होता है।

भाषा के प्रकार

1. मौखिक भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा
मौखिक भाषा- भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता हैं, मौखिक भाषा कहलाती है। यह भाषा का प्राचीनतम रूप है। मनुष्य ने पहले बोलना सीखा। इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है। उदाहरण– भाषण, दूरदर्शन, रेडियो, टेलीफोन आदि।
लिखित भाषा- भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार का मन के भाव लिखकर प्रकट करता है, और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है लिखित भाषा कहलाती है। उदाहरण– पत्र लेखन, पत्रिका, जीवनी, समाचार-पत्र, कहानी आदि।
सांकेतिक भाषा- जिन संकेतों के द्वारा बच्चे या गूंगे अपनी बात दूसरों को समझाते हैं उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं। जैसे- चौराहों पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बाधिर का वार्तालाप आदि।
नोट- साकेतिक भाषा का अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।

भाषा की विशेषतायें

a. भाषा पैतृक सम्पत्ति नहीं है।
b. भाषा नियमबद्ध व्यवस्था है। 1. सुनना, 2. बोलना, 3. पढ़ना, 4. लिखना (L, S, R, W)
c. भाषा अर्जित सम्पत्ति है।
d. भाषा निरन्तर परिवर्तनशील है।
e. भाषा का अर्जन अनुकरण के माध्यम से होता है।
f. मातृभाषा में ही बच्चे का मस्तिष्क सबसे पहले क्रियाशील होता है।
g.प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।
h. भाषा शिक्षक को कक्षा और कक्षा से बाहर बच्चों को भाषा प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

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भाषा विकास (Language Development)

मनुष्य सामाजिक प्राणी है इस नाते उसे निरन्तर अपने विचारों को दूसरों के सामने अभिव्यक्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है अतः भाषा और विचारों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का एक सुन्दर और सुगग गाध्यम है। एक गूंगा व्यक्ति दूसरों के सामने स्वयं को कितना असहाय महसूस करता है जब वह अपने विचारों को भाषा के माध्यम से प्रकट नहीं कर पाता है। यद्यपि वह अपने हाव-भाव तथा अंग संचालन द्वारा अपनी बात को कहने का प्रयास करता है किन्तु उसमें इतनी स्पष्टता नहीं होती है। अतः भाषा के माध्यम से विचारों को प्रकट करने पर उनमें स्पष्टता आ जाती है। अतः प्रत्येक बालक के विकास क्रम में भाषा विकास होना परम आवश्यक है।

भाषा विकास बालकों के मानसिक और सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करता है। भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान करने से व्यक्ति की सामाजिकता का विकास होता है। इसी प्रकार पढ़ने, लिखने, सीखने आदि सभी क्रियाओं में भी भाषा विकास माध्यम का कार्य करता है। भाषा विकास के कारण ही मानव दूसरे जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है।

1.शैशवावस्था में भाषा विकास (Language Development in Infaney)

शिशु का प्रथम क्रन्दन उसकी भाषा विकास की शुरुआत होती है। इस समय उसे स्वर और व्यंजनों ज्ञान नहीं होता है। लगभग उसे चार माह तक शिशु जो ध्वनियाँ निकालता है उनमें स्वरों की संख्या अधिक होती है। लगभग 10 माह की अवस्था में शिशु एक शब्द का उच्चारण करता है और उसी शब्द की पुनरावृत्ति बार-बार करता है। लगभग । वर्ष तक शिशु की भाषा अस्पष्ट होती है केवल उसके माता-पिता ही अनुमान स्वरूप उसके शब्दोच्चारण का अर्थ निकाल सकते हैं। लगभग 15 वर्ष की आयु में उसकी कुछ-कुछ भाषा समझ में आने लगती है। शैशवावस्था में बालक की वाक्य रचना केवल एक शब्द की होती है। जैसे दूध के लिए वह बू-बू शब्द का उच्चारण करता है। इसी प्रकार वे अन्य वस्तुओं के लिए भी एक ही शब्द का प्रयोग करते हैं।

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स्मिथ (Smith) ने शैशवावस्था के भाषा विकास क्रम को निम्न सारणी के अनुसार प्रस्तुत किया है-
स्मिथ के अनुसार शैशवावस्था में भाषा विकास

आयु                                                 शब्द
जन्म से 8 माह                                     0
10 माह                                                1
1 वर्ष                                                   3
1 वर्ष 3 माह                                         19
18 माह या 1 वर्ष 6 माह                          22
1 वर्ष 9 माह                                         118
2 वर्ष                                                   212
4 वर्ष                                              1550
5 वर्ष                                             2072
6 वर्ष                                                2562

2. बाल्यावस्था में भाषा विकास (Language Development in Childhood)


जैसे-जैसे बालक की आयु में वृद्धि होती है वैसे वैसे उसके स्वरयन्त्र तथा स्नायुविक अंगों में परिपक्वता आती जाती है फलस्वरूप धीरे-धीरे उसका भाषा विकास तीव्र गति से होने लगता है। बाल्यावस्था में बालक शब्द से लेकर वाक्य निर्माण की क्रिया में दक्षता प्राप्त कर लेता है। बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बाल्यावस्था में भी बालिकाओं का भाषा विकास बालकों की तुलना में तीव्र गति से होता है तथा लड़कों की अपेक्षा उनके वाक्यों में शब्दों की संख्या अधिक होती है। इसके अतिरिक्त भाषा प्रस्तुतीकरण में भी बालिकायें बालकों से तेज होती हैं। प्रथम छ: वर्षों तक यह गति तीव्र रहती है फिर मन्द हो जाती है। बाल्यावस्था में भाषा विकास पर घर, विद्यालय, समूह के साथी,
परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति तथा उचित निर्देश का प्रभाव पड़ता है।

सीशोर ने बाल्यावस्था में भाषा विकास का अध्ययन किया,4 से 10 वर्ष तक के 117 बालकों पर चित्रों की सहायता से उसने प्रयोग किये। उसके परिणामों का संकलन अग्रलिखित तालिकानुसार है-

आयु                                                 शब्द

4 वर्ष                                             5600
5 वर्ष                                              9600
6 वर्ष                                                14700
7 वर्ष                                            21200
8 वर्ष                                            26309
10 वर्ष                                             34300


3. किशोरावस्था में भाषा विकास (Language Development in Adoles- cence)


भाषा विकास की दृष्टि से भी किशोरावस्था अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस समय उसकी भाषा का स्वरूप स्व-निर्धारित होता है। उसके शब्दों में भावों की गहनता तथा शब्दों की जटिलता होती है। उच्चारण में शुद्धता आ जाती है और व्याकरण का प्रयोग सन्तोषजनक होता है। इसके अतिरिक्त किशोरावस्था में जो संवेगों की बहुलता होती है। इससे भी भाषा विकास प्रभावित होता है।

कल्पना शक्ति का बाहुल्य होने के कारण इसी अवस्था में वे कवि, कहानीकार, चित्रकार, नाटककार, अभिनेता, विचारक आदि बनने की सोचते हैं। इस समय उनका शब्द भण्डार विस्तृत हो जाता है। निश्चित भाषा शैली का विकास होता है। भाषा में प्रौढ़ता होती है। किशोरों का भाषा विकास उनके सामाजिक समायोजन में सहायता प्रदान करता है। किशोर चिन्तनशील तथा संवेदनशील प्राणी होता है। वह अपने चिन्तन व संवेगों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। भाषा के उचित प्रयोग से वह समूह के बीच अपना एक स्थान बना पाता है जिससे सामाजिक समायोजन में सहायता मिलती है।

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भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक / Effecting Factors of Language Development

( Language Development ) या भाषा विकास अपने-आप में स्वतन्त्र रूप से नहीं होता। इस पर अनेक प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। शब्द भण्डार, वाक्य-विन्यास तथा अभिव्यक्ति के प्रसार आदि पर विभिन्न कारकों का प्रभाव पड़ता है। इन कारकों द्वारा भाषा विकास निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित होता है-

1. स्वास्थ्य (Health)
2. बुद्धि ( intelligence)
3. हकलाना ( stammering)
4. सामाजिक आर्थिक स्तर ( social economic status )
5. यौन ( Sex)
6. परिवारिक संबंध (Family relationship)
7. एकाधिकार भाषा (Bilingualism)

भाषा विकास के सिद्धान्त

भाषा विशेष रूप से एक मानव व्यवहार है। यह मानव क्रियाओं में एक मुख्य भूमिका निभाती है। बच्चों में भाषा का विकास किस प्रकार होता है। इसे स्पष्ट करने के लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास किया है। इस प्रयास के फलस्वरूप भाषा विकास के तीन सिद्धान्त सामने आते हैं-

(1) भाषा का विकास स्वतः होता है।
(2) भाषा वातावरण में सीखी जाती है।
(3) भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है।

                                        निवेदन

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