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लोकपाल बिल पर निबंध / essay on ombudsman bill in hindi
रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) महत्व, (3) विदेशों में स्थिति, (4) स्वरूप, (5) वर्तमान स्थिति, (6) उपसंहार ।
प्रस्तावना-
लोकपाल उच्च सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने और उस पर कार्यवाही करने के लिए पद है। भारत में सन् 1971 में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया है । पाँचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित न हो सका। राजीव गाँधी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त, 1985 को संसद प्रस्तुत किया गया और 20 अगस्त, 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया, जो पारित न हो सका।
महत्व-
वर्तमान समाज सेवी अन्ना हजारे लोकपाल बिल लाने के लिए देशवासियों को प्रेरित कर रहे हैं एवं राजनीतिज्ञों से मिल रहे हैं लेकिन अन्ना हजारे एवं भारत सरकार के मध्य आम सहमति न बन पाने के कारण यह विधेयक चर्चा के घेरे में है। प्रश्न यह है कि भारत में लोकपाल विधेयक के दायरे में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, केन्द्रीय मन्त्रियों, शीर्ष न्यायपालिका एवं लोकसभा अध्यक्ष आदि को रखा जाये।
विदेशों में स्थिति—
विदेशों में प्राप्त लोकपाल के कार्य क्षेत्र में आने वाले अधिकारियों, मन्त्रियों आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करके भारत में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए विभिन्न अधिकारियों को इसके दायरे में लाना चाहिए। स्वीडन के लोकपाल की जाँच के दायरे में असैनिक प्रशासन कर्मचारियों के अतिरिक्त न्यायाधीश एवं पादरियों को भी रखा गया है, लेकिन मन्त्रीगण उनके क्षेत्राधिकार से बाहर हैं जिससे संसदीय उत्तरदायित्व विभाजित न हो जाये।
डेनमार्क में लोकपाल, मन्त्रियों एवं लोक कर्मचारियों की जाँच तो कर सकता है लेकिन न्यायाधीशों के कार्य एवं व्यवहार पर टिप्पणी नहीं कर सकता। न्यूजीलैण्ड में लोकपाल को मन्त्री पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण रखने का अधिकार नहीं है। विदेशी सम्बन्ध, अन्तर्देशीय राजस्व एवं प्रधानमन्त्री के विभाग भी उसके क्षेत्र के बाहर है। जबकि ब्रिटेन में लोकपाल की जाँच के दायरे में सभी मन्त्रालय, सिविल सेवा आयोग, केन्द्रिय सूचना कार्यालय इत्यादि आते हैं। विदेश सम्बन्ध, सुरक्षा, कर्मचारी प्रशासन, पुलिस, निगम, सरकारी ठेके इत्यादि को लोकपाल की जाँच के दायरे से बाहर रखा गया है।
स्वरूप—
यह संस्था चुनाव आयोग एवं सुप्रीम कोर्ट के समान सरकार से स्वतन्त्र होगी। किसी भी मुकदमें की जाँच एक वर्ष के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक वर्ष में पूरा होगा। भ्रष्ट नेता, अधिकारी अथवा जज को 2 वर्ष के अन्दर जेल भेजा जायेगा।
वर्तमान स्थिति –
बहुप्रतीक्षित लोकपाल विधेयक 2011 लोकसभा में चली बहस के बाद संशोधनों के साथ करतल ध्वनि से पारित कर दिया गया। इस पर मतदान से पहले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी एवं वामपंथी दलों के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। दोनों पार्टियों के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन के दौरान कहा कि भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटने के लिए प्रभावी लोकपाल विधेयक के लिए सरकार उनके सुझावों पर ध्यान नहीं दे रही है।
उपसंहार –
तैतालीस वर्ष की प्रतीक्षा के बाद लोकसभा ने अन्ततः निपटने के लिए लोकपाल विधेयक पारित कर दिया परन्तु सरकार को साथ ही एक बड़ा झटका लगा, जब लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिए जाने वाला संविधान संशोधन धन विधेयक गिर गया क्योंकि विधेयक पारित कराने के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत सरकार नहीं जुटा पायी। इस प्रकार बहुप्रतीक्षित लोकपाल बिल राजनीतिक अस्थिरता के कारण फिर से अधर में लटक गया है।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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