भगवान महावीर स्वामी पर निबंध / essay on Mahaveer Swami in hindi

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भगवान महावीर स्वामी पर निबंध / essay on Mahaveer Swami in hindi

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) जीवन-परिचय, (3) धर्म प्रचार, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना –

धर्म प्रधान देश भारत में अनेकानेक धर्म-प्रवर्तकों ने जन्म लिया है। भगवान् श्रीकृष्ण की इस सूक्ति को चरितार्थ करने वाले इन धर्म-प्रवर्तकों को भगवान की संज्ञा देना कोई अत्युक्ति नहीं होगी। श्रीकृष्ण के कहे गये वचनों के आधार पर ये महात्मन् ईश्वरीय अवतार से किसी अर्थ में कम सिद्ध नहीं होते हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानं धर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम् ॥

परित्राय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।

महावीर स्वामी जी का जन्म उस समय हुआ जब यज्ञों का महत्त्व बढ़ने के कारण केवल ब्राह्मणों की ही प्रतिष्ठा समाज में लगातार बढ़ती जा रही थी। पशुओं की बलि देने से यज्ञ-विधान महँगे हो रहे थे। इससे उस समय का जन समाज मन-ही-मन पीड़ित था; क्योंकि इससे ब्राह्मणवादी चेतना सभी जातियों को हीन समझ रही थी। कुछ समय बाद समाज में यह भी असर पड़ने लगा कि धर्म आडम्बर बनकर सभी ब्राह्मणेतर जातियों को दबा रहा है। ब्राह्मण जाति गर्वित होकर अन्य जातियों को पीड़ित करने लगी। इसी समय देवी कृपा से महावीर स्वामी धर्म के सच्चे स्वरूप को समझाने के लिए और परस्पर भेदभाव की गहराई को भरने के लिए सत्यस्वरूप में इस पावन भारत भूमि पर प्रकट हुए।

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जीवन परिचय –

महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बिहार राज्य के वैशाली के कुण्डग्राम में लिच्छवी वंश में हुआ था। आपके पिता श्री सिद्धार्थ वैशाली के क्षत्रिय शासक थे। आपकी माता श्रीमती त्रिशला देवी धर्म-परायण भारतीयता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं। बाल्यावस्था में महावीर स्वामी का नाम वर्धमान था। किशोरावस्था में एक भयंकर नाग तथा मदमस्त हाथी को वश में कर लेने के कारण आप महावीर के नाम से पुकारे जाने लगे थे ।

यद्यपि आपको पारिवारिक सुखों की कोई कमी न थी लेकिन ये पारिवारिक सुख तो आपको आनन्दमय और सुखमय फूल न होकर दु:खों एवं काँटों के समान चुभने लगे थे। आप बहुत ही दयालु और कोमल स्वभाव के थे। अतः प्राणियों के दुःख को देखकर संसार से विरक्त रहने लगे। युवावस्था में आपका विवाह एक सुन्दर राजकुमारी से हो गया। फिर भी आप अपनी पत्नी के प्रेमाकर्षण में बँधे नहीं, अपितु आपका मन और अधिक संसार से उचटता चला गया। अट्ठाईस वर्ष की आयु में आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया।

इससे आपका विरक्त मन और खिन्न हो गया। आप इसी तरह संसार से वैराग लेने के लिए चल पड़े थे, लेकिन बड़े भाई नन्दिवर्धन के आग्रह पर दो वर्ष और गृहस्थ जीवन के जैसे-तैसे काट दिये। इन दो वर्षों के भीतर महावीर स्वामी ने मनचाही दान-दक्षिणा दी। लगभग तीस वर्ष की आयु में आपने संन्यास पथ को अपना लिया। आपने इस पथ के लिए गुरुवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक अनवरत कठोर साधना की थी। इस विकट तपस्या के फलस्वरूप आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। अब आप जंगलों की साधना छोड़कर शहरों में अपने साधनारत कर्म का विस्तार करने लगे। आप जनमानस को विभिन्न प्रकार के ज्ञानोपदेश देने लगे।

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धर्म प्रचार-

अपने लगभग 40 वर्षों तक बिहार प्रान्त के उत्तर-दक्षिण स्थानों में अपने मतों का प्रचार कार्य किया। इस समय आपके अनेकानेक शिष्य बनते गये और वे सभी आपके सिद्धान्त-मतों का प्रचार कार्य करते गये। महावीर स्वामी ने जीवन का लक्ष्य केवल मोक्ष प्राप्ति माना है। आपने अपनी ज्ञान-किरणों के द्वारा जैन धर्म का प्रवर्त्तन किया। जैन धर्म के पाँच मुख्य सिद्धान्त हैं—सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना और जीवन में शुद्धाचरण। इन पाँचों सिद्धान्तों पर चलकर ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। महावीर स्वामी ने सभी मनुष्यों को इस पथ पर चलने का ज्ञानोपदेश दिया है। महावीर स्वामी ने यह भी उपदेश दिया कि जाति-पाँति से न कोई श्रेष्ठ बनता है। इसलिए मानव-मात्र के प्रति प्रेम और सद्भावना की स्थापना का ही उद्देश्य मनुष्य को अपने जीवनोद्देश्य के रूप में समझना चाहिए। सबकी आत्मा को अपनी आत्मा के ही समान समझना चाहिए, यही मनुष्यता है।

उपसंहार –

भगवान् महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में आज भी सश्रद्धा और ससम्मान पूज्य और आराध्य हैं। यद्यपि आपकी मृत्यु 92 वर्ष की आयु में पापापुरी नामक स्थान पर बिहार राज्य में हुई, लेकिन आज भी आप अपने धर्म-प्रवर्त्तन के पथ पर अपने महान कार्यों के कारण यश-काया से हमारे अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर कर रहे हैं।

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