माता-पिता की सेवा पर निबंध / essay on parent service in hindi

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माता-पिता की सेवा पर निबंध / essay on parent service in hindi

माता-पिता की सेवा पर निबंध / essay on parent service in hindi

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) माता-पिता, (3) मातृ-प्रेम, (4) पितृ-प्रेम,(5) पुत्र या पुत्री के कर्त्तव्य, (6) उपसंहार।

प्रस्तावना–

संसार में दो प्रकार का प्रेम होता है-सच्चा और स्वार्थ भरा अर्थात् दिखावटी। सच्चा प्रेम करने वाला स्वयं कष्ट सहता है, किन्तु बदले में कुछ नहीं चाहता है। दिखावटी प्रेम करने वाला तब तक ही प्रेम करता है, जब तक उसका स्वार्थ सिद्ध नहीं हो जाता है। संसार में चार व्यक्ति ऐसे हैं जो सच्चा प्रेम करते हैं-माता, पिता, गुरु और सच्चा मित्र । माता-पिता जब तक बच्चा पढ़ने योग्य नहीं होता है, तब तक माता-पिता ही उसका पालन-पोषण करते हैं। जब वह पढ़ने योग्य होता है, तब गुरु के सम्पर्क में आता है। मित्र का सम्पर्क तो बहुत दिन बाद होता है।

मातृ-प्रेम–

बच्चे के गर्भ में आते ही माता उसकी सुरक्षा में लग जाती है। गर्भ की रक्षा के लिए वह कड़वी-से-कड़वी चीज खाती है। यहाँ तक कि नीम का तेल भी पीती है। वह बालक को पेट में रखती है। जब बच्चा पैदा हो जाता है, तब वह उसके मल-मूत्र से घृणा नहीं करती है। जाड़े के दिनों में यदि बच्चा मल-मूत्र कर देता है और कपड़े की कमी होती है तो माता स्वयं गीले में सोती है और बच्चे को सूखे में सुलाती है। यदि गरीब माता का बच्चा बीमार पड़ जाता है तो वह कहीं से भी पैसा लेकर या मेहनत मजदूरी करके उसका इलाज कराती है। वह उसके हर प्रकार के नटखटपन को सहती है। यदि घर में अन्न कम है तो वह स्वयं भूखी रह जाती है, किन्तु बच्चे को खिलाती है।

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पितृ-प्रेम-

साधारण श्रेणी का पिता बच्चे के पालन-पोषण के लिए सब प्रकार के कष्ट सहता है। वह अच्छी वस्तु स्वयं न ख़ाकर बच्चे को खिलाता है। बच्चे के पालन-पोषण के लिए वह भले-बुरे काम भी करता है तथा जादू-टोने करने वालों के पास जाता है। जब बच्चा पढ़ने योग्य हो जाता है तो पिता उसकी पढ़ाई के लिए पैसा जुटाता है। वह अपना पेट काटकर उसकी पढ़ाई के लिए पैसे इकट्ठे करता है।

पुत्र या पुत्री के कर्त्तव्य-

जब सब प्रकार के कष्टों को सहकर माता-पिता, पुत्र-पुत्री का पालन-पोषण करते हैं, तब पुत्र या पुत्री का कर्त्तव्य है कि वह उनकी सेवा करे। माता-पिता की सबसे बड़ी सेवा यही है कि वे उनकी आज्ञा का पालन करें। माता-पिता सदा यही चाहेंगे कि उनकी सन्तान सदा उन्नति करे। वे यह नहीं चाहेंगे कि उनकी सन्तान तुरे लोगों की संगति में रहे। वे अपनी सन्तान का इन सबसे दूर रहने के लिए कहें तो सन्तान का कर्त्तव्य है कि वह उनकी आज्ञा माने।

श्रीराम का हम जो इतना आदर करते हैं, उसका कारण यही है कि वे माता-पिता की आज्ञा का पालन करते थे। जब राम को माता कैकेयी से यह ज्ञात हुआ कि पिताजी चाहते हैं कि मैं वन चला जाऊँ तो वे बहुत बड़े राज्य के सुख को ठुकरा कर वन को चले गये।

भीष्म पितामह ने पिता के मन को प्रसन्न करने के लिए बहुत बड़ा राज्य को ठुकरा दिया था और आजीवन कुँवारे रहे थे।

श्रवणकुमार के अन्धे और बूढ़े माता-पिता की इच्छा थी कि वह उन्हें तीर्थों की यात्रा कराये । श्रवण कुमार बेहँगी में बैठाकर अपने बूढ़े और अन्धे माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराता हुआ अयोध्या में आया। वह प्यासे माता-पिता के लिए जब सरयू में घड़ा भरने लगा, तब महाराज दशरथ ने घड़े की आवाज को जंगली हाथी की आवाज समझ उसे मार दिया। ये उदाहरण शिक्षा देते हैं कि हमको अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए तथा उनकी आज्ञा माननी चाहिए। यदि वे रोगी हो गये हों तो उनकी सेवा करनी चाहिए। यदि उन पर कोई विपत्ति आ गयी हो तो उसको दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। जो पुत्र या पुत्री माता-पिता की सेवा करते हैं, माता-पिता पसन्न होकर उन्हें सच्चे हृदय से अच्छा आशीर्वाद देते हैं, जिससे उनका सदा कल्याण होता है। वे सुखी और स्वस्थ रहते हैं।

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उपसंहार—

तुलसीदासजी ने कहा है-

“सुनु जननी सोई सुत बड़ भागी,जो पितु मातु वचन अनुरागी ।”

पुत्र के लिए माता-पिता के समान संसार में और कोई श्रेष्ठ और प्रत्यक्ष देवता नहीं है। अत: सन्तान को सब प्रकार से उनकी सेवा करनी चाहिए। इसी में सन्तान का कल्याण है। माता-पिता हित का उपदेश देने वाले प्रत्यक्ष देवता हैं। स्वर्ग में जो दूसरे देवी-देवता हैं, वे शरीर प्रदान करने वाले नहीं हैं। शरीर ही जीव के स्वर्ग और मोक्ष का एक मात्र साधन है। जिसकी कृपा से शरीर,धन, सन्तान, स्त्री और सनातन लोक सभी मिले हैं, उनसे बढ़कर पूज्यतम भला कौन हो सकता है ?

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