मेरा प्रिय कवि अथवा गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध / essay on my favorite poet in hindi

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मेरा प्रिय कवि अथवा गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध / essay on my favorite poet in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) रचनाएँ, (3) प्रभाव और सन्देश, (4) उपसंहार : साहित्य में स्थान ।

प्रस्तावना –

भारत की पवित्र भूमि पर प्राचीन काल से अनेक विद्वान् जन्म लेते आये हैं। अनेक सरस्वती-पुत्रों ने भारत का मस्तक ऊँचा किया है। यहाँ विभिन्न भाषाओं के प्रतिभा सम्पन्न कवि समय-समय पर अवतरित हुए हैं। इन्हीं कवियों में हिन्दी भाषा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। गोस्वामी जी के साहित्य-सरोवर में अवगाहन करते हुए जब से इन भक्त-कवि से परिचय हुआ है, तभी से वे मेरे प्रिय कवि बन गये हैं।

रचनाएँ—

गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवन का लक्ष्य राम-भक्ति बना लिया था। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनमें ‘रामचरित मानस’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है। कौनसा ऐसा हिन्दू घर होगा, जहाँ यह ग्रन्थ न मिले ? प्रायः बच्चों के मुख से भी रामचरित मानस की चौपाई सुनी जा सकती हैं। इन्होंने अन्य ग्रन्थ भी लिखे, जिनमें विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली, कृष्णगीतावली और दोहावली प्रमुख हैं।

प्रभाव और सन्देश-

तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ लिखकर हिन्दू जाति का कल्याण नहीं किया, अपितु सम्पूर्ण मानव-जाति का कल्याण किया है। सामाजिक दृष्टि से इसमें भाई-भाई का प्रेम, पति-पत्नी का प्रेम, पुत्र का माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य, सेवक-स्वामी का भाव, राजा-प्रजा का सम्बन्ध आदि सभी बातें आदर्श रूप में प्रस्तुत की गयी हैं। राजनीतिक दृष्टि से गोस्वामी जी आदर्श राजा के पक्ष में थे। राजा को प्रजा की भलाई करने वाला होना चाहिए। जिसके राज्य में प्रजा दुःखी है, उस राजा को धिक्कार है,

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“जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी।”

गोस्वामी जी के अनुसार जिस राजा के राज्य में प्रजा दुःखी है, वह राजा अवश्य ही नरक का अधिकारी है। धार्मिक क्षेत्र में गोस्वामी जी ने महान् कार्य किया। उन्होंने  शिव और राम में स्वामी-सेवक का सम्बन्ध दिखलाते हुए शैव और वैष्णवों के झगड़े को शान्त किया

“शंकर प्रिय मम द्रोही, शिव द्रोही मम दास।

वे नर करहिं कल्पतरि, घोर नरक महुँ वास ॥

शिव द्रोही मम दास कहावा,

सो नर मोहि सपनेहुँ नहि भावा ॥”

उन्होंने रावण का वध राम के द्वारा कराया। पाप एवं अत्याचार को भगवान् स्वयं जन्म लेकर नष्ट कर देते हैं। तुलसीदास जी ने नीच जाति में जन्मे व्यक्ति को भी राम की भक्ति का अधिकारी बना दिया। निषाद, कोल, भील आदि रामभक्त बन गये। उनका राम-नाम महल से झोंपड़ी तक में गूंज उठा। उससे हिन्दुओं को साहस एवं बल मिला। वे भगवान् राम की शरण में आये तुलसीदास जी के सभी काव्य ग्रन्थों में धर्मनिरपेक्षता और मानवता का दिव्य सन्देश सुनाई पड़ता है। कवि तुलसी ने कर्म को सर्वोपरि बतलाते हुए

कहा है- “कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।

जो जस करहिं सो तस फल चाखा ॥”

उपसंहार : साहित्य में स्थान—

तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य में सर्वोच्च आसन पर आसीन हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य को रसों से भर दिया। उन्होंने ब्रज तथा अवधी दोनों भाषाओं में कविता की। ‘रामचरित मानस’ हिन्दुओं का धर्मग्रन्थ तो है ही, वह हिन्दी साहित्य का अमूल्य रत्न भी है। इसका अनुवाद अनेक भाषाओं में हो चुका है। तुलसी की रचनाओं में अखिल मानव-जाति के लिए संदेश हैं। ये रचनाएँ भारतीय जीवन के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक सिद्ध हुई हैं और शताब्दियों से भारतीय जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती आ रही हैं। लोक-कल्याण की दृष्टि से इनका सर्वोच्च स्थान है। हिन्दी साहित्य में तुलसीदास जी अपनी महान् प्रतिभा और कवित्व शक्ति के कारण हिमालय के शिखर की भाँति अजेय व्यक्तित्व लिये खड़े हैं। तुलसी-सा कवि पाकर हिन्दी साहित्य कृत-कृत्य हो गया।

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