विभिन्न अवस्थाओं में बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास / moral development in child in hindi

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विभिन्न अवस्थाओं में बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास / moral development in child in hindi

विभिन्न अवस्थाओं में बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास / moral development in child in hindi
विभिन्न अवस्थाओं में बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास / moral development in child in hindi

शैशवावस्था में नैतिक या चारित्रिक विकास (moral development in infancy)

इस अवस्था मे हुए नैतिक विकास या चारित्रिक विकास को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से देख सकते हैं –

(1) उचित-अनुचित का ज्ञान न होना

(2) सामान्य नियमों का ज्ञान होना

(3) अहम् के भाव की प्रबलता

(4) आज्ञापालन के भाव की प्रबलता

(5) नैतिकता का उदय

(6) कार्य के परिणाम के प्रति चेतनता

बाल्यावस्था में नैतिक / चारित्रिक विकास (moral development in childhood)

यह अवस्था चारित्रिक विकास को स्थायित्व देने वाली अवस्था होती है। इस अवस्था मे हुए नैतिक विकास या चारित्रिक विकास को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से देख सकते हैं –

(1) ‘हम’ की भावना का विकास

(2) सही-गलत, न्याय-अन्याय में अन्तर करना सीखना

(3) आदर्श व्यक्तित्व का चुनाव

(4) धार्मिक भावों का उदय

किशोरावस्था में चारित्रिक /नैतिक विकास (moral development in adolescence)

इस अवस्था मे हुए नैतिक विकास या चारित्रिक विकास को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से देख सकते हैं –

(1) समायोजन का अभाव

(2) मानव धर्म का महत्त्व

(3) सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण

(4) चारित्रिक गुणों का विकास

बालक के नैतिक या चारित्रिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

निम्नलिखित कारक / तत्व बालक के नैतिक विकास को प्रभावित करते हैं-

(1) परिवार का वातावरण

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बालक के नैतिक व चारित्रिक विकास में परिवार के वातावरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार के लोगों में अच्छे गुण विद्यमान हैं। तो बालक भी उन गुणों को ही सीखता है।

(2) माता पिता और मित्रों का चरित्र

यदि बालक के माता पिता और उसके साथ रहने वाले मित्र चरित्रवान है अर्थात उनमें नैतिकता के अच्छे गुण हैं तो बालक भी उन गुणों को सीखता है और उसमें भी नैतिकता का गुण आता है।

(3) विद्यालय

नैतिकता का पाठ परिवार के बाद विद्यालय में ही पढ़ाया जाता है। यदि विद्यालय बालक को अच्छे-अच्छे नैतिकता के पाठ पढ़ाता है उसे अच्छे गुणों के बारे में बताता है तो बालक का चारित्रिक विकास होता है।

(4) आस पास के क्रिया-कलाप

बालक अपने आसपास के क्रियाकलापों से बहुत कुछ सीखता है। यदि बालक के आसपास का माहौल सही है या नैतिकता से भरा हुआ है तो बालक का नैतिक विकास होता है।

(5) अधिक स्नेह

कभी-कभी बालक को अधिक लाड़ प्यार बिगाड़ देता है। अर्थात अधिक स्नेह के कारण बालक की गलतियों को माफ कर दिया जाता है। जिससे बड़े होकर बालक उन गलतियों को सुधार नहीं पाता है।

(6) नैतिकता के कार्य

यदि बालक को नैतिकता के कार्य सिखाया जाए अर्थात उसे बताया जाए ईमानदारी,ईर्ष्या ना करना, किसी की बुराई ना करना यह सब अच्छे गुण हैं। उससे नैतिकता के कार्य भी कराए जाएं जैसे किसी की मदद करना, तो बालक का नैतिक विकास होता है।

(7) अन्य कार्य

नैतिक विकास में बच्चे द्वारा नैतिक संकल्पनाओं और नैतिक व्यवहार का सीखना शामिल है। बच्चे इन्हें सामाजिक व्यवहार की भांति ही सीखते हैं। नैतिक विकास के एक चरण से दूसरे चरण तक जाने में बच्चा, समाज, माता-पिता, भाई-बहन, समसमूह और शिक्षकों से प्रभावित होता है।बनीचे दिए गए कुछ क्रियाकलाप नैतिक विकास में सहायक होंगे –

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(a) सबसे पहले शिक्षक को स्वयं एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।

(b) शिक्षक को बच्चों में ईमानदारी, सही और गलत की भावना और सही काम करने की इच्छाशक्ति जैसे वांछनीय मूल्य उत्पन्न करने चाहिए।

(c) शिक्षार्थियों को वीरगाथाएं और महान नेताओं की कहानियां सुनाई जा सकती है। उन्हें ऐसे व्यक्तियों की कहानियां सुनाई जानी चाहिए जो ईमानदार हैं, जिन्होंने अच्छे काम किए हैं और दूसरों की सहायता की है।

चारित्रिक विकास एवं अधिगम
(CHARACTER DEVELOPMENT AND LEARNING)

चारित्रिक विकास एवं अधिगम की प्रक्रिया में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। समाज में चरित्रवान व्यक्तियों की प्रतिष्ठा होती है जिससे सभी बालक उन गुणों को सीखने का प्रयास करते हैं जिससे समाज में उनको चरित्रवान समझा जा सके। इसके विपरीत उन क्रियाओं से दूर रहते है जो कि उन्हें चरित्रहीन बनाती है। अतः चरित्र का विकास बालकों को विभिन्न प्रकार की सार्थक क्रियाओं को सीखने के लिये प्रेरित करता है। चारित्रिक विकास एवं अधिगम के सम्बन्ध को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. चारित्रिक विकास में उन क्रियाओं का समावेश होता है जो शिक्षा एवं ज्ञान से सम्बन्धित होती हैं। इस स्थिति में बालक जब अपने चरित्र का विकास करता है तो उसको इन क्रियाओं को अनिवार्य रूप से सीखना पड़ता है।

2. चारित्रिक विकास में कर्तव्यपालन की भावना छिपी होती है। बालक को बताया जाता है कि उसका प्रमुख कर्तव्य अध्ययन कार्य करना है। इसलिए उसको अध्ययन कार्य करना चाहिए। इससे बालक शैक्षिक एवं अशैक्षिक गतिविधियों को तीव्रता के साथ सीखता है।

3. चारित्रिक विकास में नैतिकता एवं मानवता का समावेश भी पाया जाता है। इससे बालक में उन सभी क्रियाओं को करने के प्रति रुचि उत्पन्न होती है जो कि सार्वजनिक कल्याण से सम्बन्धित होती हैं। सार्वजनिक कल्याण की क्रियाओं का सम्बन्ध मानवीय एवं नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार चारित्रिक विकास सीखने में योगदान देता है।

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4. चारित्रिक विकास बालकों को मर्यादित व्यवहार करना सिखाता है जिसके परिणामस्वरूप बालक उन सभी समाजपयोगी क्रियाओं को सीखता है जो कि उसे एक चरित्रवान प्राणी के रूप में विकसित करती हैं।

5. चारित्रिक विकास मानव में प्रेम, सहयोग एवं परमार्थ की भावना को विकसित करता है जिससे बालक अन्धविश्वास एवं रूढ़िवादिता सम्बन्धी क्रियाओं को नहीं सीखता है तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निहित कार्यों को सीखता है।

6. चारित्रिक विकास से सम्बन्धित व्यवस्था के अन्तर्गत छात्रों को विद्यालय के अन्तर्गत उन क्रियाओं को सिखाया जाता है जो कि समाज, राष्ट्र एवं स्वयं बालक के हित में होती हैं। इन क्रियाओं के आधार पर ही बालक अनेक प्रकार की शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सामाजिक योग्यताओं को सीखता है।

                                        निवेदन

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