प्रतीप अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / प्रतीप अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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प्रतीप अलंकार की परिभाषा

प्रतीप शब्द का अर्थ होता है विपरीत। जहाँ उपमान को उपमेय के समान कहा जाए अथवा उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाए, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है।

उदाहरण –  इन दशनों अधरों के आगे क्या मुक्ता है, विद्रुम क्या?

स्पष्टीकरण –  [पहली स्थिति में प्रतीप उपमा का उलटा होता है। प्रतीप का अर्थ ही होता है। विरुद्ध या उलटा। यदि कहा जाय-मुख चन्द्रमा के समान है, तो हुई उपमा। इसके स्थान पर यदि लिखा हो – चन्द्रमा उसके मुख के समान है, तो प्रतीप होगा। ऊपर लालिमा से युक्त संध्या की तुलना कृष्ण के मुख की कांति से की गयी है।]

उदाहरण –  तों मुख ऐसो पंकसुत अरु मयंक यह बात ।
                  बरनै सदा असंक कवि बुद्धि रंक विख्यात ।

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स्पष्टीकरण –  यह प्रसिद्ध उपमान पंकज यानी कमल को उपमेय तथा उपमेय मुख को उपमान बताया गया है, इसलिए यहाँ प्रतीप अलंकार है।

प्रतीप अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) संध्या फूली परम प्रिय की कांति सी है दिखाती।
(2) गरबु करौ रघुनन्दन जिनि मन माहिं ।
       देखो अपनी मूरति, सिय के छाहिं ।

(3) तरनि- तनूजा नीर सोहत स्याम शरीर सम
     तन मन की सब पीर, दरसन – परसन ।।

(4) विद्युत की द्युति फीकी लगे, रघुवीर प्रिया मुख के आगे ।
   चाँदनी चंद की मन्द परै, विद्यु पाई मनौ निज कोमुद माँगे ।।

(5) नाहिं खग अनेक बारीसा।
    सूर न होहिते सुनु सब कीसा ।।

(6) भूपति भवन सुभायँ सुहावा ।
      सुरपति सरनु न पटतर आवा।।

(7) संध्या फूली परम प्रिया की कांति सी है दिखाती ।

(8) इन दशनों अधरो के आगे क्या मुक्ता हैविद्रुम क्या ?

(9) उसी तपस्वी से लम्बे थे। देवदार दो चार खड़े ।

(10) देत मुकुति सुन्दर हरषि, सुनि परताप उदार ।
         है तेरी तरवार सी, कालिन्दी की धार ।।

(11) सकल सुख की नींव, कोटि मनोज शोभा हरनि ।

(12) तीरक्ष नैन कटाच्छन मन्द काम के बान ।






                             ★★★ निवेदन ★★★

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