प्रतिवस्तूपमा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / प्रतिवस्तूपमा अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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प्रतिवस्तूपमा अलंकार की परिभाषा

जब उपमेय और उपमान सम्बन्धी अलग-अलग वाक्यों में भिन्न-भिन्न शब्दों से एक ही अर्थ ध्वनित हो, तब प्रतिवस्तूपमा अलंकार होता है।
अथवा
जहाँ उपमेय और उपमान के पृथक्-पृथक् वाक्यों में एक ही समानधर्म दो भित्र-भित्र शब्दों द्वारा कहा जाय, वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलंकार होता है।

उदाहरण – तिनहि सुहाय न नगर बधावा।
               चोरहिं चाँदनि रात न भावा ॥

स्पष्टीकरण –यहाँ प्रथम और द्वितीय दोनों वाक्यों में रुचिकर न होने का भाव ‘सुहाय न’ और ‘न भावा’ दो भिन्न पदों से व्यक्त हुआ है।

उदाहरण – सिंहसुता क्या कभी स्यार से प्यार करेगी?
              क्या परनर का हाथ कुलस्त्री कभी धरेगी?

स्पष्टीकरण –  यहाँ दोनों वाक्यों में पूर्वार्द्ध (उपमानवाक्य) का धर्म प्यार करना उत्तरार्द्ध (उपमेय-वाक्य) में हाथ धरना के रूप में कथित है। वस्तुतः दोनों का अर्थ एक ही है। एक ही समानधर्म केवल शब्दभेद से दो बार कहा गया है।

उदाहरण – लसत सूर सायक-धनु-धारी।
               रवि प्रताप सन सोहत भारी ।।

स्पष्टीकरण – यहाँ पहला उपमेय-वाक्य और दूसरा उपमान-वाक्य है और दोनों में ‘शोभना’ साधारण धर्म ‘लसत’ और ‘सोहत’ इन दो शब्दों से कहा गया है, अतः प्रतिवस्तूपमा है।

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प्रतिवस्तूपमा अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) नेता झूठे हो गए, अफसर हुए लबार.

(2) हम अनुशासन तोड़ते, वे लांघें मर्याद.

(3) पंकज पंक न छोड़ता, शशि ना ताजे कलंक.

(4) ज्यों वर्षा में किनारा, तोड़े सलिला-धार.
    त्यों लज्जा को छोड़ती, फिल्मों में जा नार..

(5) सोहत भानु-प्रताप सों, लसत सूर धनु-बान

                              ★★★ निवेदन ★★★

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