मेरी प्रिय पुस्तक अथवा रामचरित मानस पर निबंध / essay on my favourite book in hindi

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मेरी प्रिय पुस्तक अथवा रामचरित मानस पर निबंध / essay on my favourite book in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) लोकप्रियता के कारण, (3) काव्य का उत्कृष्ट रूप, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना-

पुस्तकें मनुष्य की पूँजी हैं, उसकी सच्ची मित्र हैं तथा जीवन के दुःख एवं कष्टों में सच्चा मार्ग दिखाने वाली हैं। अच्छी पुस्तकें मनुष्य को अलौकिक आनन्द में डुबो देती हैं। यही कारण है कि मैंने भी अनेक अच्छी-अच्छी पुस्तकों को पढ़ा, परन्तु उनमें से सर्वाधिक आनन्द और सुख-सन्तोष मुझे गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ से मिला है। अतः यह मेरा प्रिय प्रन्थ है।

लोक प्रियता के कारण-

‘रामचरित मानस’ की रचना का उद्देश्य गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में ‘स्वान्तः सुखाय’ था । अर्थात् गोस्वामी जी ने अपने मन को सुख और आनन्द प्रदान करने के लिए इसकी रचना की। उनके मन को आनन्द देने वाला रसायन मर्यादा पुरुषोत्तम राम लोक कल्याणकारी स्वरूप का चित्रण था, अतः उन्होंने उसी का आश्रय लेकर ‘रामचरित मानस’ में पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक आदर्शों की गंगा बहायी। इसमें स्नान करके न जाने कितने लोगों का जीवन धन्य हो गया और होता रहेगा।

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काव्य का उत्कृष्ट रूप-

राम का जीवन पारिवारिक आदर्शों का समूह था। अनुज लक्ष्मण और भरत के प्रति उनका व्यवहार भ्रातृ-स्नेह, माता कैकेयी और ‘कौशल्या का आज्ञा पालन उनकी मातृ-भक्ति तथा पिता दशरथ की आज्ञा पालन उनकी पितृ-भक्ति का उत्तम उदाहरण है। उनकी पत्नी सीता पतिव्रत धर्म की सजीव मूर्ति हैं। उनके अनुज भरत तथा लक्ष्मण त्याग और सेवा का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। गृहस्थ-जीवन का जैसा आदर्श रूप ‘रामचरित मानस’ में देखने को मिलता है, वैसा अन्य किसी पुस्तक में नहीं। रामचरित मानस की लोकप्रियता का दूसरा कारण है— धार्मिक समन्वय ।

इसमें हिन्दू धर्म के विविध रूपों का समन्वय करके शैवों, वैष्णवों, शक्ति के उपासकों और कर्मकाण्डियों के झगड़ों को समाप्त किया गया है और धर्म को उदार बनाया गया है। ‘रामचरित मानस’ में समाज की सुव्यवस्था के लिए नीति और मर्यादा का  प्रतिपादन किया गया है। राम द्वारा बालि का वध तथा शिव द्वारा काकभुशंडि को शाप मर्यादा-पालन के उत्तम उदाहरण हैं। बालि ने अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी का अपहरण करके उसे अपनी पत्नी बनाया और काकभुशुंडि ने गुरु को प्रणाम नहीं किया। दोनों को दण्डित करना मर्यादा की दृष्टि से आवश्यक था।

परशुराम और समुद्र को क्षमादान, हनुमान के प्रति कृतज्ञता, सुग्रीव और विभीषण पर कृपा, अत्याचारी रावण का वध आदि घटनाएँ नैतिक आदर्शों की झाँकी कराती हैं। समाज के कल्याण हेतु गुरुजनों एवं विद्धानों का आदर, वीरों के प्रति श्रद्धा, निर्बलों की रक्षा तथा अत्याचारियों का दमन नितान्त आवश्यक है। राम के चरित्र में इन विशेषताओं का सर्वोच्च स्वरूप देखने को मिलता है। इसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण है-‘राम राज्य’ के आदर्श का प्रतिपादन, जिसमें कोई दरिद्र एवं दुःखी न रहे। इस शासन-प्रणाली में एकतंत्र और प्रजातंत्र दोनों प्रणालियों का सुन्दर समन्वय दिखाया गया है।

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यद्यपि राजा का सबसे बड़ा पुत्र राजगद्दी का अधिकारी होता था, तो भी इसके लिए प्रजा की स्वीकृति आवश्यक समझी जाती थी। इसके अतिरिक्त राजा पर राग-द्वेष से परे निष्पक्ष गुरु का नियंत्रण रहता था और उसके परामर्श से राज-काज होता था। ‘रामचरित मानस’ की सर्वप्रियता का कारण काव्य का उत्कृष्ट स्वरूप भी है, जिसके कारण यह हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ काव्य समझा जाता है।  भाव-पक्ष तथा कला-पक्ष दोनों ही दृष्टि से यह अद्वितीय काव्य है। इसमें महान् कवि गोस्वामी तुलसीदास के अन्तःकरण से निकली सच्ची कविता के दर्शन होते हैं।

उपसंहार-

धर्म और साहित्य दोनों ही दृष्टियों से रामचरित मानस एक अभूतपूर्व रचना है। बाल्यकाल से लेकर राज्याभिषेक तक जितनी विविध परिस्थितियों में राम का जीवन विकसित हुआ, वे केवल जीवन की विविध रूपता को प्रस्तुत नहीं करती, अपितु हृदय-मंथन करने वाली गम्भीरता और विषमता भी उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ‘रामचरित मानस’ एक अनूठी पुस्तक है। इसके समान लोकप्रियता अन्य किसी पुस्तक को प्राप्त नहीं हुई है। इसके द्वारा दिया गया मानवता का संदेश, नीति एवं मर्यादा का संदेश हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में गूँज रहा है। इस महान् पुस्तक ने न जाने कितनों का उद्धार किया है। यह उक्ति बिल्कुल सत्य है-

भारी भवसागर उतारतो कवन पार,

जो पै यह रामायण तुलसी न गावतो ।

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                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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