रंगों का त्योहार होली पर निबंध / essay on colours of festival Holi in hindi

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रंगों का त्योहार होली पर निबंध / essay on colours of festival Holi in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) होली मनाने का समय, (3) मनाने का कारण, (4) त्यौहार का वर्णन, (5) दोष, (6) उपसंहार।

प्रस्तावना –

मनुष्य सदैव से ही उत्सवों में रुचि लेता रहा है। दिनचर्या की नीरसता और ऊब से बचने के लिए मनुष्य उत्सवों का आयोजन करता है। त्यौहार या उत्सव मनुष्य के उल्लास को प्रकट करते हैं तथा मानव-जीवन को आमोद-प्रमोद के अवसर प्रदान करते हैं। भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही ” एक प्रमुख त्यौहार है। समय-समय पर अनेक त्यौहार मनाये जाते रहे हैं। भारतीय त्यौहारों में होली होली मनाने का समय होली का त्यौहार बसन्तोत्सव के रूप में मनाया आता है।

बसन्त के आगमन से शरद् काल की ठिठुरन और जड़ता समाप्त हो जाती है। प्रकृति में नव-जीवन का संचार होने लगता है। वृक्षों के जीर्ण पत्ते गिरने लगते हैं और उन पर नई कोपलें फूटने लगती हैं। खेतों में पीली चूनर ओढ़े सरसों झूमती दिखाई देती है। सारी धरती पर आम्रवन का सौरभ फैल जाता है। फसलें अन्न के कणों से बोझिल होकर झूम-झूम उठती हैं। मानव-जीवन में भी एक अपूर्व उल्लास और उमंग छा जाती है। इसी उल्लासपूर्ण वातावरण में होली मनायी जाती है।

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मनाने का कारण–

भारत एक कृषि प्रधान देश है। किसान अपनी फसल पकने पर सर्वप्रथम अन्न कण अग्नि देवता को समर्पित करता है और खुशियाँ मनाता है। इसे बसन्तोत्सव के रूप में भी मनाने की परम्परा भारतवर्ष प्राचीनकाल से प्रचलित है। यही उल्लास भरा पर्व होली के रूप में मनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि ईश्वर-द्रोही हिरण्यकश्यप अपने ईश्वर भक्त पुत्र प्रहलाद को मरवा डालना चाहता था। हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। प्रहलाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गयी ।

धर्म की इसी विजय को आज भी होली के रूप में मनाया जाता है। त्यौहार का वर्णन-फाल्गुन आरम्भ होते ही हर मौहल्ले और गाँव में एक स्थान पर होली रख दी जाती है। फाल्गुन की पूर्णिमा ही होली का दिन है। घर-घर पकवान बनते हैं। रात को होली में आग लगायी जाती है। जौ और गेहूँ की बालें अग्नि में भूनकर लोग खाते हैं। अगले दिन प्रातः से ही रंग, गुलाल और अबीर की होली आरम्भ होती है। सभी लोग जाति और धर्म का भेद भुलाकर एक-दूसरे पर रंग डालते हैं। मुसलमान और ईसाई भी इसमें सम्मिलित होते हैं। ब्रज की होली तो आज भी देखने योग्य है।

इस त्यौहार पर बच्चों में विशेष उत्साह दिखाई देता है। वे एक-दूसरे रंग में भिगोकर बहुत आनन्दित होते हैं। दोपहर तक रंग डालने का कार्यक्रम चलता रहता है, फिर सब नहा-धोकर नये कपड़े पहनकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं। गरीब लोग इस त्यौहार को विशेष उल्लास से नहीं मना पाते। उनके यहाँ पकवानों की खुशबू तक नहीं पहुँच पाती। उनकी खुशियाँ रंग और गुलाल तक ही सीमित रह जाती हैं। महँगाई और गरीबी के शिकार आम आदमी के जीवन में तो केवल अरमानों की होली जला करती है।

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दोष –

होली मिलन का त्यौहार है, फिर भी इस अवसर पर अक्सर लड़ाई-झगड़ा देखने को मिलता है। कारण स्पष्ट है कि कई लोग रंगों के इस त्यौहार का महत्त्व नहीं समझते। यह त्यौहार बैर-भाव मिटाता है, किन्तु इस अवसर पर मदिरा और भाँग के कारण होली के आदर्शों पर चोट लगती है। इस हर्षोल्लास के त्यौहार पर गुब्बारों की मार और कीचड़ हर्ष को विषाद में बदल देती है। हाँ होली का रंग जमाने के लिए नाच-गाने, हास्य कवि गोष्ठियाँ की जाएँ। इस अवसर पर मित्रों को आमन्त्रित कर होली मिलन का आयोजन किया जाए।

उपसंहार –

होली का संदेश है कि हम सारे जातीय एवं धार्मिक भेद-भाव को भुलाकर इस त्यौहार को प्रेमपूर्वक मनायें। हमें इसे एक आदर्श सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाना चाहिए। एक-दूसरे पर प्रेम का ऐसा रंग उड़ेलें कि सब सराबोर हो जायें और निश्छल भावना से गले मिलें, तभी हमारा होली मनाना सार्थक होगा।

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                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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