रूपक अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / रूपक अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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रूपक अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / रूपक अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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रूपक अलंकार की परिभाषा

जहाँ गुण की अत्यंत समानता दर्शाने के लिए उपमेय और उपमान को ‘अभिन्न’ अर्थात् ‘एक’ कर दिया जाए,दूसरे शब्दों में उपमान को उपमेय पर आरोपित कर दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

अथवा

काव्य में जब उपमेय में उपमान का निषेध रहित अर्थात् अभेद आरोप किया जाता है। अर्थात् उपमेय और उपमान दोनों को एक रूप मान लिया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसका विश्लेषण करने पर उपमेय उपमान के मध्य रूपी वाचक शब्द आता है।

रूपक अलंकार के उदाहरण

उदाहरण – जलता है यह जीवन-पतंग ।

स्पष्टीकरण – यहाँ ‘जीवन’ उपमेय है और ‘पतंग’ उपमान। परंतु रूपक अलंकार के कारण जीवन (उपमेय) पर पतंग (उपमान) का आरोप कर दिया गया है।

उदाहरण – अंबर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा नागरी ।

स्पष्टीकरण – जयशंकर प्रसाद की इस पंक्ति में उपमेय अंबर, तारा और उषा पर उपमान पनघट घट और नागरी का निषेधरहित आरोप हुआ है। इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।

उदाहरण – अरुन सरोरुह कर चरन, दृग-खंजन मुख-चंद ।
                 समै आइ सुंदरि-सरद, काहि न करति अनंद ॥

स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में शरद् ऋतु में सुन्दरी का, कमल में हाथ-पैरों का, खंजन में आँखों का और चन्द्रमा में मुख का भेदरहित आरोप होने से रूपक अलंकार है।

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रूपक अलंकार के भेद

रूपक के तीन भेद होते हैं-(1) निरंग (2) सांग और (3) परम्परित ।

(i) सांगरूपक – जहाँ उपमेय पर उपमान का सर्वांग आरोप हो, वहाँ ‘सांगरूपक’ होता है; जैसे-
उदित उदयगिरि-मंच पर, रघुबर बाल पतंग ।
बिकसे सन्त सरोज सब, हरखे लोचन-भ्रंग ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ रघुबर, मंच, संत, लोचन आदि उपमेयों पर बाल सूर्य, उदयगिरि, सरोज, भृंग आदि उपमानों का आरोप किया गया है; अतः यहाँ सांगरूपक अलंकार है।

(ii) निरंगरूपक –जहाँ उपमेय पर उपमान का सर्वांग आरोप न हो, वहाँ निरंगरूपक होता है, जैसे-
कौन तुम संसृति जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मपा एक

स्पष्टीकरण – इसमें संसृति (संसार) पर जलनिधि (सागर) का आरोप है, लेकिन अंगों का उल्लेख न होने से यहाँ निरंगरूपक अलंकार है।

(iii) परम्परितरूपक–जहाँ एक रूपक दूसरे रूपक पर अवलम्बित हो, वहाँ परम्परितरूपक होता है; जैसे-
बन्दौ पवनकुमार खल-बन-पावक ज्ञान-घन ।

स्पष्टीकरण – यहाँ पवनकुमार (उपमेय) पर अग्नि (उपमान) का आरोप इसलिए सम्भव हुआ कि खलों (दुष्टों) को घना वन (जंगल) बताया गया है; अत: एक रूपक (खल-वन) पर दूसरे रूपक (पवनकुमाररूपी पावक) के निर्भर होने से यहाँ परम्परितरूपक अलंकार है।

रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण-

(1) चरण कमल बंदी हरिराई ।
(2) बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घर उषा नागरी ।
( 3 ) आए महंत बसंत । (महंत बसंत)
( 4 ) सत्य सील दृढ़ ध्वजा-पताका । (सत्य सील ध्वजा-पताका)
(5) एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास । (राम घनश्याम चातक तुलसीदास)
(6) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं । (चंद्र खिलौना)
(7) मन का मनका फेर । (मन का मनका)।
(8) संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो। (संसार-समरस्थली)
(9) वन-शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े । (चंद्रिका-चादर)
(10) सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर अहा नचा रहा। (मनोमयूर )

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(11) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । (राम-रतन)
(12) सुख चपला-सा दुख-घन में। (दुख-घन, मन-कुरंग)
उलझा है चंचल मन-कुरंग ।
(13) खिले हजारों चाँद तुम्हारे नयनों के आकाश में।(नयन-आकाश)
(14) जसुमति उदर अगाध उदधि है, उपजी ऐसी सबनि कहीं री ।(उदर-उदधि )
(15) उदित उदय-गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।( उदयगिरि-मंच, रघुवर बाल पतंग) विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भृंग ।। (संत-सरोज, लोचन -भृंग)
(16) मुख-चंद्र। आशय है-मुख ही चन्द्रमा है।



                       ★★★ निवेदन ★★★

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