समाज सेवा पर निबंध / essay on Social service in hindi

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समाज सेवा पर निबंध / essay on Social service in hindi

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रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) समाज सेवा का प्रादुर्भाव, (3) समाज सेवा की आवश्यकता (4) समाज सेवा का विकृत रूप, (5) उपसंहार । 

प्रस्तावना- 

भारतीय संस्कृति प्रमुख विशेषता है—सेवा भाव । सेवा किसकी करनी चाहिए? यह हमें हमारे धार्मिक ग्रन्थ निर्देश करते हैं—माता-पिता की सेवा, गुरु की सेवा, दीन-दुखियों की सेवा तथा ताई गयी है। यह सेवाएँ किसी-न-किसी स्वार्थ से अतिथि-सेवा धर्म ग्रन्थों में प्रेरित होकर की जाती हैं। गीता में श्रीकृष्ण भगवान् ने निष्काम कर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया है, इस श्रेणी में समाज-सेवा आती है।

समाज सेवा का प्रादुर्भाव-

हमारे देश में समाज सेवा भारतीय समाज में अतीत से विद्यमान है। बदलती हुई परिस्थितियों में इसका स्वरूप अवश्य परिवर्तनशील रहा है। प्राचीन समय में समाज सेवा का कार्य राजा-महाराजा किया करते थे। राजघराने समाप्त हुए, देश गुलाम हुआ। ऐसी परिस्थिति में सेवा भाव लुप्त हो गया, अंग्रेज भारतीय जनता पर अत्याचार कर रहे थे और निरीह भारतीय जनता इस जुल्म को सह रही थी। भारत भूमि में, जो सदैव से देव भूमि रही है, अनेक महापुरुषों का यहाँ जन्म हुआ, जिनमें मदर टैरेसा, राजा राममोहन राय, रामकृष्ण परमहंस, लाला लाजपतराय, मदनमोहन मालवीय, दादाभाई नौरोजी, महात्मा गाँधी, अब्दुल गफ्फार खाँ, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, सुभाषचन्द्र बोस आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने समाज सेवा और देश सेवा के अद्भुत उदाहरण विश्व के समक्ष रखे हैं।

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समाज सेवा की आवश्यकता – 

हमारे समाज में अनेक व्यक्ति ऐसे हैं, जिनका अपना कहने को कोई नहीं है। ऐसे व्यक्तियों पर जब कोई परेशानी आती है। तो ऐसे समय में समाज का दायित्व बन जाता है कि उस असहाय व्यक्ति की मदद करे। समाज में अनेक दीन-दुखियों को सहायता की आवश्यकता होती है। कहीं पर प्राकृतिक आपदा आती है तो उस स्थान के निवासियों को सहायता की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे समय में देश-विदेश के स्वयंसेवी संगठन सक्रिय होकर सहायता करते हैं।

सन् 1999 में उड़ीसा में आये तूफान ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त करके रख दिया। मंत्रियों के दौरे हुए। सरकार ने तूफान पीड़ितों की सहायता के लिए जनता से अपील की। जनता ने दिल खोलकर सहयोग दिया। यह तो रही सामूहिक समाज-सेदा की बात। हमें व्यक्तिगत रूप से भी समाज-सेवा करनी चाहिए। समाज सेवा का कोई एक रूप नहीं है, जहाँ समाज के व्यक्ति को किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, उसकी सहायता करना सच्ची समाज सेवा है। मदर टैरेसा की समाज सेवा आज के समय में अनुकरणीय है। इन्होंने अपना सारा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में अर्पण कर दिया था।

समाज-सेवा का विकृत रूप-

वर्तमान समय में समाज-सेवा के ठेकेदार नेता लोग बनते हैं। वे जनता में जा-जाकर आश्वासन देते हैं कि हम समाज की सेवा करेंगे, एक बार हमको चुनाव जिता दो। चुनाव जीतने के बाद नेताजी का समाज सेवा का रूप समय के अनुसार बदल जाता है। आज कल समाज सेवा की एक लहर सी चल गयी है। चार-छः बेरोजगार व्यक्ति मिलकर सामाजिक संगठन का निर्माण कर लेते हैं और समाज सेवा के लिए चन्दा एकत्रित करना। प्रारम्भ कर देते हैं। अधिकांश सामाजिक संगठन उस चन्दे को ही खा जाते हैं। हम प्रतिदिन टी० वी०, समाचार-पत्र, रेडियो आदि में देखते और सुनते हैं कि समाज सेवा के नाम पर कैसे-कैसे काण्ड होते हैं। भगवान् बचाये ऐसी समाज सेवा से ।

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उपसंहार-

भारतीय संस्कृति में दरिद्रनारायण की सेवा ईश्वर की सच्ची पूजा बतायी गयी है। धार्मिक दृष्टि से नहीं तो सामाजिक दृष्टि से हमको समाज-सेवा करनी चाहिए। आजकल हम देखते हैं कि समाज में संयुक्त परिवारों में विघटन आ जाने के कारण बड़े-बूढ़ों की बहुत ही दयनीय दशा हो गयी है। लड़के-लड़कियाँ बूढ़े माँ-बाँप को बोझ समझने लगते हैं। फिर तो उन बुड्ढे-बुढ़ियों का जीवन नर्क ही बन जाता है। कैसी विचित्र विडम्बना है कि श्रवण कुमार के ही देश में आज माता-पिता की दुर्दशा हो रही है। माता-पिता की ऐसी स्थिति के लिए समाज जिम्मेदार है। हमारी सच्ची समाज-सेवा इनकी सेवा है। अपने बड़े-बूढ़ों की सेवा करके ही हमारे अन्दर सच्ची समाज सेवा के भाव जाग्रत हो सकते है ।

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