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समायोजन का अर्थ एवं परिभाषाएं / समायोजन के उपाय या तरीके
adjustment / समायोजन का अर्थ
समायोजन दो शब्दों से मिलकर बना है – सम + आयोजन
इस प्रकार समायोजन का अर्थ सुव्यवस्थित या अच्छी तरह से परिस्थितियों को अनुकूल न बनाने की प्रक्रिया से है। व्यक्ति की आवश्यकता और परिस्थितियों के बीच सामंजस्य स्थापित कर लेना ही समायोजन है। जब एक प्राणी या व्यक्ति अपने विचारों को अथवा अपने आप को किसी भी स्थिति के साथ संतुलित कर लेता है तो वह समायोजन कहलाता है।
समायोजन की परिभाषाएं
“समायोजन अधिगम की एक प्रक्रिया है।” –स्किनर
“एक अच्छा समायोजन वह है जो यथार्थ पर आधारित व सन्तोष देने वाला होता है।”-स्मिथ
“समायोजन व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति तथाकठिनाइयों के निराकरण के प्रयासों का परिणाम है।” –कालमैन
कुसमायोजन किसे कहते हैं
जो व्यक्ति आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के बीच समायोजन नहीं कर पाता है, कुसमायोजित हो जाता है।
कुसमायोजन के कारण उत्पन्न मानसिक रोग
(1) तनाव – जब व्यक्ति समय परिस्थिति तथा आवश्यकतानुसार कार्य नहीं कर पाता है। वह असफल हो जाता है। तो वह तनाव का शिकार होता है।
(2) दुश्चिन्ता – जब अचेतन मन में दमित इच्छा चेतन में आने का प्रयास करती है तो व्यक्ति दुश्चिन्ता का शिकार हो जाता है।
(3) दबाव – सफलता व असफलता तथा आत्मसम्मान की रक्षा के समय दबाव उत्पन्न होता है।
(4) भग्नाशा/कुण्ठा – बार-बार प्रयत्न करने के बावजूद भी जब व्यक्ति असफल हो जाता है तो वह निराश हो जाता है। इसी निराशा को भग्नाशा कहते हैं।
(5) द्वन्द्व/संघर्ष – जब एक साथ दो प्रतिकूल अवसर उपस्थित हो जाते हैं तो वह चयन किसी एक का करना होता है। तो मस्तिष्क में द्वन्द्व या संघर्ष उत्पन्न हो जाता है।
समायोजन के उपाय-तरीके
(1) प्रत्यक्ष उपाय
(2) अप्रत्यक्ष उपाय
(3) क्षतिपूर्ति उपाय
(4) आक्रामक उपाय
(1) प्रत्यक्ष उपाय
(i) उद्देश्य को पूरा करने हेतु अन्य मार्ग खोजना
(ii) अपनी बाधाओं को नष्ट करना
(iii) लक्ष्यों का प्रतिस्थापन करना
(iv) समय पर सही निर्णय लेकर लक्ष्य प्राप्त करना
(v) विश्लेषण एवं निर्णय
(2) अप्रत्यक्ष उपाय
1. दमन
2.शमन
3. पलायन/प्रतिगमन
4. उदान्तीकरण/शोधन
5. तदात्मीकरण
6. विस्थापन
7. प्रक्षेपण
8. युक्तिकरण/औचित्यस्थापन
9. स्वप्न
10. क्षतिपूर्ति
11. पृथक्करण
दमन
बलपूर्वक अपनी इच्छाओं को रोकना, जब किसी व्यक्ति का किसी व्यक्ति या परिस्थितिकी के साथ किसी भी कीमत पर समायोजन सम्भव नहीं है, जानता है व्यक्ति यहाँ पर समायोजन सम्भव नहीं हो सकता तो वह कुसमायोजन से बचने के लिए दमन करता है या इच्छाओं को रोकता है।
शमन
शक्तिपूर्वक इच्छाओं का दमन करना शमन कहलाता है।
जैसे- समाज में हो रही अप्रिय घटनाओं को शान्तिपूर्वक दमन कर देता है।
पलायन/प्रतिगमन (Present नहीं हो रहा Past वाली चीज पर पुनः जाना)
जब किसी परिस्थिति स्थिति को देखकर नहीं हो पायेगा, वहाँ से भागना, पीछे हटना, भागने की कोशिश करना पलायन कहलाता है।जब कोई व्यक्ति अपने निम्न स्तर का कार्य करता है। उसे प्रतिगमन कहते हैं।
उदात्तीकरण/शोधन
जब किसी व्यक्ति का कार्य असामाजिक होता है या गलत होता है। या किसी घटना विशेष के कारण गलत कार्य कर लेता है उसे उदात्तीकरण कहते हैं और वह उस कार्य को सुधार लें तो उसे शोधन कहते हैं।
जैसे– अशोक कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक ने अपना हृदय परिवर्तन कर लिया। इसी प्रकार कालिदास और तुलसीदास के साथ हुआ ।
तदात्मीकरण
कोई बढ़ा व्यक्ति का अनुकरण कर जैसे- अपने आप को मानना व समझना तदात्मीकरण कहलाता है। इसमें किसी ऐसे व्यक्ति का परिचय दते हुए जो व्यक्ति समाज में लोकप्रिय हो, सम्मानित हो उसका समायोजन स्थापित कर लेता है। जैसे- सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, विवेकानंद आदि।
विस्थापन
जब एक व्यक्ति अपने से किसी उच्च स्तर के व्यक्ति के साथ प्रत्यक्ष समायोजन नहीं कर पाता है। तो उसके सकारण उत्पन्न हुआ गुस्सा/ रोष प्रदर्शन, उस व्यक्ति पर न करके अपने किसी कमजोर या निम्नस्तर के व्यक्ति पर करना विस्थापना कहलाता है। जैसे- ऑफिस में बॉस के सामने कुछ न कह पाना और उसका गुस्सा घर (पत्नी) पर किसी के ऊपर निकाल देना विस्थापन है।
प्रक्षेपण
अपनी कमियों दोषों को दूसरे लोगों मे देखना प्रक्षेपण कहलाता है।
जैसे- लड़का Exam में पास नहीं हुआ कहा कि मेरे पास Book किताब नहीं थी, पेपर Out of Syllabus था।
• नाच न आवे, आंगन टेढ़ा।
.क्रिकेट खिलाड़ी मैच हार जाता है। तो वह अपने बल्ले को दोष देता है।
मुक्तिकरण/औचित्य स्थापन
जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने में असफल हो जाये और अपनी असफलता के लिए तर्क दे युक्तिकरण कहते हैं।
जैसे- लोमड़ी के हाथ में अंगूर न आना उसे खट्टे बताना । यह परीक्षा तो मेरे लायक ही नहीं था, वैसे ये जॉब मुझे करनी ही नहीं थी। (परीक्षा में फेल होने पर)
क्षतिपूर्ति
जब किसी व्यक्ति की इच्छा की पूर्ति प्रत्यक्ष रूप से नहीं होती तो, वह अन्य तरीके से अपनी इच्छा की पूर्ति कर लेता है, क्षतिपूर्ति कहलाता है। जैसे- महिला छोटी है वह सैन्डिल पहनकर अपनी क्षतिपूर्ति करती है।
पृथक्करण
यदि कोई स्थिति तनाव पैदा करती है तो उस स्थिति से अपने आप को अलग कर लेना। वहाँ से चले जाना ही पृथक्करण जैसे- घर में लड़ाई होने पर वहाँ चले जाना
आक्रामक उपाय
अपने क्रोध को हिंसात्मक तरीके से अभिव्यक्ति करना आक्रमक कहलाती है।
रक्षक के रूप में
किसी के अनुचित व्यवहार व असमाजिक तथ्यों के प्रति आक्रामक होना।
भक्षक के रूप में
जब किसी को अनावश्यक बिना किसी कारण से चोट पहुँचाना उसका शोषण करना यह अनुचित है।
निवेदन
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