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शब्द की परिभाषा एवं प्रकार / शब्दों का वर्गीकरण
types of word in hindi / शब्दों का वर्गीकरण
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शब्द किसे कहते हैं / शब्द की परिभाषा
एक या एक से अधिक वर्णों (अक्षरों) के मेल (योग) से निर्मित
सार्थक वर्ण समूह या अक्षर समूह को शब्द कहा जाता है; जैसे-
मन एक शब्द है, जो चार वर्णों (म्, अ, न् तथा अ) एवं दो अक्षरों
(म तथा न) से मिलकर बना है। इस शब्द के दो अर्थ होते हैं- 1.
चित्त तथा 2. एक मात्रक; जैसे-
सूरज ने अपने मन की बात बता दी। (चित्त के अर्थ में)
सूरज ने नीरज को एक मन गेहूँ दिया। (मात्रक के अर्थ में)
पद किसे कहते है
शब्द जब वाक्य में प्रयुक्त होता है तब उसे पद कहा जाता है।किंतु वाक्य के बाहर यह शब्द कहलाते हैं।
कुछ शब्द हैं-बच्चा, मिठाई, खाना। यहाँ ये स्वतंत्र हैं, इनका परस्पर कोई संबंध नहीं है। अब इन्हीं तीनों शब्दों के प्रयोग से जब हम वाक्य बनाते हैं –बच्चे ने मिठाई खाई ।
तब ये तीनों ही शब्द पद हो गए। बच्चा’ शब्द का रूप वाक्य में बच्चे ने हो गया, ‘खाना’ शब्द खाई हो गया। ‘बच्चा’ संज्ञा में कर्ता कारक होने से यह परिवर्तन आया तथा ‘खाना’ क्रिया में काल के अनुसार परिवर्तन आया। अर्थात् शब्द वाक्य में प्रयुक्त हो जाने पर व्याकरण के नियमों के अनुसार रूप ग्रहण करते हैं, तब उन्हें शब्द न कह कर पद कहा जाता है।
शब्द के प्रकार | शब्दों का वर्गीकरण | shabd in hindi
शब्दों के विभाजन,शब्दों के वर्गीकरण के कुल 4 आधार हैं,जो निम्नलिखित हैं।
(1) अर्थ के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) सार्थक शब्द
(ii) निरर्थक शब्द
सार्थक शब्द के अंतर्गत – एकार्थी ,समानार्थी,अनेकार्थी,विपरीतार्थी शब्द आते हैं।
कुछ विद्वान अर्थ के आधार पर शब्दो को निम्न 3 प्रकार से विभाजित किये हैं :–
(i) वाचक
(ii) लक्षक
(iii) व्यंजक
(2) उत्पत्ति / स्रोत / इतिहास / भाषायी विकास के आधार पर शब्दों के प्रकार
(i) तत्सम शब्द
(ii) तद्भव शब्द
(iii) देशज / देशी शब्द
(iv) विदेशज / विदेशी / आगत शब्द
(v) संकर शब्द
(3) रचना /बनावट / व्युत्पत्ति के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) रूढ़ शब्द
(ii) यौगिक शब्द
(iii) योगरूढ़ शब्द
(4) प्रयोग / व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) विकारी शब्द
(ii) अविकारी शब्द
हिंदी व्याकरण में शब्द के प्रकार / types of word in hindi
(1) अर्थ के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) सार्थक शब्द – जिन शब्दों का अपने आप में अर्थ होता है,सार्थक शब्द कहलाते हैं। ये व्याकरण सम्मत होते हैं। जैसे – जानवर,विद्यालय,मंदिर,पूजा आदि।
सार्थक शब्दों के प्रकार
(A) एकार्थी शब्द – जिस शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है,एकार्थी शब्द कहलाते हैं। जैसे – सूरज ,चाँद आदि।
(B) अनेकार्थी शब्द – जिस शब्दो के एक से अधिक अर्थ हो ,अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। जैसे – अंक क्योंकि इसका अर्थ गोद भी होता है तथा अंक का मतलब एक संख्या भी होती है।
इसीप्रकार निम्न शब्दो को देखिए
हरि – विष्णु,इंद्र,घोड़ा,सूर्य,बन्दर,सर्प,हाथी ।
क्षेत्र – खेत,शरीर,तीर्थ,स्थान ।
गुण – विशेषता, रस्सी,स्वभाव ।
पत्र – पत्ता,चिट्ठी,शंख,पन्ना ।
(C) समानार्थी / पर्यायवाची शब्द – एक ही अर्थ वाले अनेक शब्दों को पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहा जाता है। जैसे –
पेड़ – वृक्ष,तरु,विटप ।
आसमान – नभ,गगन,अम्बर,आकाश ।
कमल – नीरज,पकंज,वारिज ।
दिन – दिवस,वार,वासर ।
(D) विपरीतार्थी / विलोम शब्द – जो शब्द परस्पर उल्टा अर्थ देते हैं अर्थात जिन शब्दों का अर्थ परस्पर विपरीत होता है,विपरीतार्थक या विलोम शब्द कहलाते हैं। जैसे – रात-दिन ,सुख-दुख , आशा- निराशा, आदि।
(ii) निरर्थक शब्द – जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता परंतु भाषा में इनका प्रयोग किया जाता है, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे – खाना – वाना , रोटी – वोटी आदि। तो यहाँ पर वाना और वोटी शब्द निरर्थक शब्द हैं।
कुछ विद्वान अर्थ के आधार पर शब्दो को निम्न 3 प्रकार से विभाजित किये हैं :–
(i) वाचक (अभिधा शब्द शक्ति) – शब्द की जिस शक्ति द्वारा किसी शब्द के साक्षात् सांकेतिक अर्थ (मुख्यार्थ) का बोध होता है, उसे वाचक (अभिधा) कहते हैं।
या जिन शब्दों का अर्थ सरलता से समझ आ जाए,उनको वाचक कहते हैं। जैसे-घर, नगर, सड़क, फल,स्कूल आदि सरलता से समझ में आ जाता है।
(ii) लक्षक (लक्षणा शब्द शक्ति) – वे शब्द, जिनका सीधा शाब्दिक अर्थ न लेकर प्रयोजन वश दूसरा अर्थ लिया जाता है, लाक्षणिक अथवा लक्षणा शब्द कहलाते हैं।
या जिस शक्ति के द्वारा लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, उसे लक्षणा कहते हैं। जैसे- किसी मूर्ख को जब हम कहते हैं, ‘तुम बिलकुल गधे हो। तब यहाँ गधा शब्द को जानवर के अर्थ में लिया जाना चाहिए, क्योंकि मनुष्य तो कभी जानवर नहीं हो सकता। यहाँ गधा का अर्थ गधा के समान मूर्ख से निकाला जाता है। इस प्रकार ‘गधा’ शब्द यहाँ लाक्षणिक है।
(iii) व्यंजक (व्यंजना शब्द शक्ति) – व्यञ्जक वे शब्द होते हैं, जिनका न वाच्यार्थ लिया जाता है और न लक्ष्यार्थ । अर्थात ये शब्द न वाचक होते है और न ही लक्षक। इन दोनों से उनका अर्थ भिन्न होता है। जैसे-कोई चोर रात में अपने एक साथी से कहता है, रात कितनी अन्धेरी है। यहाँ कहने वाले का तात्पर्य रात के अंधेरे की विशेषता बताना नहीं वास्तव में उसका तात्पर्य है कि चोरी के लायक शानदार रात है।
(2) उत्पत्ति / स्रोत / इतिहास / भाषायी विकास के आधार पर शब्दों के प्रकार
(i) तत्सम शब्द – संस्कृत के वे शब्द जिनका प्रयोग हिन्दी में ज्यों का त्यों होता है, तत्सम्क हलाते हैं। ये शब्द संस्कृत भाषा में अपने विभक्ति चिह्नों या प्रत्ययों के साथ प्रयुक्त होते हैं, जबकि हिन्दी में ये विभक्ति चिह्नों या प्रत्ययों से रहित होते हैं। जैसे-
संस्कृत शब्द हिंदी शब्द
ज्येष्ठः ज्येष्ठ
पर्यंङ्क पर्यंक
कर्पूरः कर्पूर
फलम फल
(ii) तद्भव शब्द – संस्कृत के वे शब्द जो प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी से गुजरते हुए एक लम्बे समय में परिवर्तित हो गए हों, तद्भव कहलाते हैं; जैसे- चन्द्र से चाँद, अग्नि से आग, जिह्वा से जीभ आदि।
(iii) देशज / देशी शब्द – देशज का अर्थ होता है – जो देश में जन्म लिया हो। वे शब्द जो बोलचाल के क्रम में अपने देश में ही क्षेत्रीय प्रभाव परिस्थिति व आवश्यकता के अनुसार प्रचलित हो गये हैं, अथवा वे शब्द जिनके विषय में यह पता न हो कि वे किस भाषा से लिये गये हैं देशज/देशी शब्द कहलाते हैं; जैसे- लोटा, तेन्दुआ, थैला, पगड़ी आदि।
(iv) विदेशज / विदेशी / आगत शब्द – वे शब्द जो विदेशी भाषाओं से ज्यों के त्यों अर्थात् अपने मूल रूप में हिन्दी में अपना लिये गये हों अर्थात् हिन्दी में प्रचलित वे शब्द जो विदेशी मूल के हैं, परंतु परस्पर संपर्क के कारण अपने देश में प्रचलित हो गये हों, विदेशज/आगत शब्द कहलाते हैं; जैसे- कम्पनी, कैम्प, स्टेशन आदि।
(v) संकर शब्द – वे शब्द जो दो भाषाओं के शब्दों के मेल से निर्मित हों, संकर शब्द कहलाते हैं। जैसे –
छाया (संस्कृत) + दार (फारसी) = छायादार
कवि (हिन्दी) + दरबार (फारसी) = कवि दरबार
अग्नि (संस्कृत) + बोट (अंग्रेजी) = अग्निबोट
टिकट (अंग्रेजी) + घर (हिन्दी) = टिकटघर
जाँच (फारसी) + कर्ता (संस्कृत) = जांचकर्ता
विसात (अरबी) + खाना (फारसी) = विसातखाना
(3) रचना /बनावट के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) रूढ़ शब्द – वे शब्द जो प्रारम्भ से ही किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते आये हैं और उनका कोई सार्थक खण्ड (टुकड़ा) न हो सके अर्थात खण्डित रूप निरर्थक हो, रूढ़ कहलाते हैं; जैसे- हाथ, कान, चावल आदि।
(ii) यौगिक शब्द – किसी भी रूढ़ शब्द में उपसर्ग, प्रत्यय या अन्य शब्द के योग के पश्चात्नि र्मित शब्द, यौगिक कहलाते हैं। समस्त संधि, समास, उपसर्ग, प्रत्यय से निर्मित शब्द यौगिक कहलाते हैं। अर्थात्, इन शब्दों का अपना पृथक अर्थ भी होता है; जैसे- राजपुत्र- राजा + पुत्र, सामाजिक-समाज + इक आदि।
(iii) योगरूढ़ शब्द – वे शब्द जो यौगिक के समान दो या दो से अधिक शब्दों के योग से निर्मित होते हैं, परन्तु अपना सामान्य अर्थ छोड़कर विशेष अर्थ प्रदान करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं; जैसे- जलज का अर्थ होता है- जल से जन्मा हुआ लेकिन यह विशेष अर्थ में कमल के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे-
1. चारपाई – चार + पाई (पाये) – चार पाये तो मेज़-कुर्सी आदि के भी होते हैं, किंतु हम केवल ‘खाट’ को ही चारपाई कहते हैं।
2. लंबोदर – लंबा + उदर (पेट) – जिसका भी पेट बड़ा हो, उसे लंबोदर नहीं कहा जाता, केवल गणेश जी को ही लंबोदर कहा जाता है।
इसीप्रकार अन्य उदाहरण भी हैं – चतुर्भुज(विष्णु जी) ,पीताम्बर (कृष्ण जी) ,चंद्रमौलि, (शिव जी) ,चतुरानन (ब्रह्मा जी) , विषधारी (शिवजी) आदि।
(4) प्रयोग / व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्दो के प्रकार
(i) विकारी शब्द – वे शब्द जिनमें लिंग, वचन व कारक के आधार पर उनके रूप में परिवर्तन (रूपान्तरण) होता हो, वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-
बालक सो रहा है- लिंग परिवर्तन, बालिका सो रही है।
वह टहल रहा है (वचन परिवर्तन)- वे टहल रहे हैं आदि।
इनके अंतर्गत निम्न शब्द आते है।
(A) संज्ञा
(B)सर्वनाम
(C)क्रिया
(D) विशेषण
(ii) अविकारी शब्द – वे शब्द जिनमें लिंग, वचन व कारक के आधार पर उनके रूप में परिवर्तन (रूपान्तरण) न होता हो, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। अविकारी शब्दों का रूप कभी नहीं बदलता है। इन्हें अव्यय भी कहा जाता है क्योंकि इनका ‘व्यय’ नहीं होता।
इनके अंतर्गत निम्न शब्द आते है।
(A) क्रिया विशेषण
(B) संबंधबोधक अव्यय
(C) समुच्चयबोधक अव्यय
(D) विस्मयादिबोधक अव्यय
★★★ निवेदन ★★★
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