थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत / थार्नडाइक के सीखने का सिद्धांत / trial and error thoery of Thorndike in hindi

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थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत / थार्नडाइक के सीखने का सिद्धांत / trial and error thoery of Thorndike in hindi

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत / थार्नडाइक के सीखने का सिद्धांत / trial and error thoery of Thorndike in hindi

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त / थार्नडाइक के सीखने का सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जाने माने व्यवहारवादी इ.एल. थार्नडाइक (E.L Thorndike) द्वारा किया गया। क्योंकि इन्होंने सिद्धान्तों की व्याख्या व्यवहारवादी सिद्धान्तों के अनुकूल की है। Thorndike का यह सिद्धान्त Stimulus (उत्तेजना)-Response (प्रतिक्रिया) (S-R) पर आधारित है।

थार्नडाइक का यह सिद्धान्त अधिगम के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है। थार्नडाइक का मानना था कि प्रत्येक अनुक्रिया के पीछे किसी न किसी उद्दीपन का हाथ होता है। ये उद्दीपक प्राणी पर इतना प्रभावशाली परिणाम डालते हैं, जिसके फलस्वरूप वह एक विशेष प्रकार की अनुक्रिया करने लगता है। इसे उद्दीपक अनुक्रिया सम्बन्ध के द्वारा प्रकट किया जाता है। थार्नडाइक का कहना है कि पशु या मनुष्य किसी कार्य को प्रयल एवं भूल द्वारा सीखता है। Thorndike ने इसे शुरू में चयन एवं संयोजी नाम दिया बाद में प्राणी द्वारा भूल करने के बाद किसी एक सही अनुक्रिया को चुनकर कार्य करने के सिद्धान्त को प्रयत्न और मूल सिद्धान्त (Trial and Error Theory) कहा।

थार्नडाइक के सिद्धांत के अन्य नाम / प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धांत के अन्य नाम

(1) उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त
(2) (S.R. Bond)सिद्धान्त
(3) सह सम्बन्धवाद का सिद्धान्त
(4) चयन का सम्बन्ध का सिद्धान्त
(5) परमाणु-बालू की टीला सिद्धान्त
(6) प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त

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थार्नडाइक का बिल्ली पर प्रयोग

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किए। थार्नडाइक ने एक भूखी बिल्ली को पिंजड़े में बन्द करके एक प्रयोग किया। भूखी बिल्ली को पिजड़े के अन्दर रखा, पिंजड़े का दरवाजा एक खटके के दबने से खुलता था। माँस का टुकड़ा पिजड़े से बाहर रखा।

बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। उद्दीपक के कारण उसमें प्रतिक्रिया आरम्भ हुई।  माँस का टुकड़ा प्राप्त करने हेतु, पिजड़े से बाहर आने के लिए अनेक असफल प्रयास करते-करते अन्ततः वह पिंजड़ा खोलना सीख ही गई।इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो गया। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है-“प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते है, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।

उद्दीपन- मांस का टुकड़ा

अनुक्रिया- बिल्ली द्वारा मांस प्राप्त करने के प्रयास

नोट- पहले उद्दीपन (Stimulus) आता है उसके पश्चात उसे प्राप्त करने के लिए अनुक्रिया (Response) की जाती है-(S-R Theory)

प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त की विशेषताएँ

थॉर्नडाइक ने प्रयत्न एवं भूल के सिद्धांत में निम्नलिखित विशेषताएँ बतलायी है-

(1) प्रेरक की उपस्थिति, जो सीखने के प्रति रुचि की निरन्तरता को बनाये रखता है।

(2) अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करना, जो सही भी होती हैं और गलत भी।

(3) भूलों या गलत क्रियाओं को न करना, बल्कि धीरे-धीरे समाप्त करना।

(4) लक्ष्य प्राप्ति प्रतिक्रियाओं एवं सहायक प्रतिक्रियाओं में क्रमिक संयोजन स्थापित करना।

थॉर्नडाइक सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Thorndike Theory)


(1) यह सिद्धान्त काफी समय लेता है क्योंकि इसमें व्यर्थ के प्रयत्न पर काफी बल दिया जाता है।

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(2) यह सिद्धान्त सीखने की प्रक्रिया को यात्रिक बना देता है तथा मानव के विवेक, चिन्तन आदि गुणों की अवहेलना करता है।

(3) यह सिद्धान्त सिर्फ किसी क्रिया को सीखने की विधि बतलाता है उसके सीखने का कारण नहीं बताता।

(4) जब किसी कार्य को एक विशेष विधि से सीख लिया जाए तो उसके लिए पुनः बार-बार प्रयत्न करना निरर्थक है।

प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त का अधिगम में महत्त्व

1. छात्र प्रोत्साहन – इस सिद्धान्त से स्पष्ट होता है कि छात्र को सीखने और उत्साहित करने के लिये उनमें प्रेरणा, लक्ष्य, उद्देश्य का होना आवश्यक है।

2. स्वकार्य की प्रवृत्ति में विकास –  समस्या का समाधान स्वयं करें, ताकि वे अपने में विश्वास पैदा कर सकें।

3. अभ्यास पर बल – छात्रों को अभ्यास का अर्थ, प्रयोग एवं महत्त्व बताना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति अभ्यास से ही महान् बनता है।

4. चिन्तन शक्ति का विकास – इस सिद्धान्त में बालकों का मस्तिष्क लगातार क्रियान्वित रहता है। वह प्रत्येक प्रतिचार को तर्क शक्ति पर तोलता है।

5. समस्या समाधान – बालकों के सामने समस्याएँ आती हैं। अतः प्रयत्नों के द्वारा ही वे अपनी समस्या का हल खोज लेते हैं।

6. समय एवं शक्ति की बचत – प्रयत्न एवं भूत के सिद्धान्त के द्वारा सीखने पर बच्चों की शक्ति, धन, समय की बचत होती है।

7. सभी वर्गों के लिये – बच्चे एवं बड़ों, मन्द बुद्धि या प्रतिभाशाली सभी वर्गों के लिये यह सिद्धान्त उपयोगी है।

प्रयास एवं त्रुटि अधिगम विधि की शैक्षिक उपयोगिता

प्रयास एवं त्रुटि अधिगम विधि की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण उपयोगिताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यह विधि एक प्रकार से सुधार की विधि है। इसके द्वारा बालक अपनी पहले की, की गई गलतियों से जो अनुभव प्राप्त करता है, उससे लाभ उठाता है।

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(2) बालकों में निरन्तर प्रयत्न करने से धैर्य और परिश्रम के गुणों का विकास होता है।

(3) इस विधि में जो क्रियाएँ बालक को सफल प्रतीत होती हैं, उसे वह दुहराता है। ये क्रियाएँ उद्दीपक के रूप में अधिगम के लिए उसे प्रेरणा प्रदान करती हैं। वह सफल क्रियाओं के चुनाव द्वारा सीखता है। इसलिए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि को ‘सफल प्रतिक्रियाओं के चुनाव द्वारा अधिगम’ (Learning by Selection of the Successful Variation) भी कहा है।

(4) यह विधि अभ्यास पर आधरित है। इसलिए सीखा हुआ कार्य स्थाई हो जाता है। अतः शिक्षक को, यदि बालक किसी कार्य में असफल हो जाता है तो उसे कई बार प्रयास करने के लिए, प्रोत्साहित करना चाहिए। यह विधि गम्भीर विषयों जैसे-गणित, विज्ञान, व्याकरण आदि के लिए बहुत उपयोगी है। गणित के प्रश्नों का समाधान, प्रयास और त्रुटि द्वारा करने का अवसर प्रदान करना चाहिए। इस विधि से बालक को अधिक लाभ होता है। बार-बार प्रयास करने से जो सफलता मिलती है, वह स्थाई होती है।

                                        निवेदन

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