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उपमा अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / उपमा अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण
उपमा अलंकार की परिभाषा
‘उप’ का अर्थ होता है समीप, ‘मा’का मापना या तोलना। अतः उपमा का अर्थ है – दो वस्तुओं को एक-दूसरे के समीप रखकर तोलना ।
जैसे – राधा रति के समान सुन्दरी है।
(क) वस्तुओं की समता तीन कारणों से की जाती है-(1) आकार (2) रंग और (3) गुण ।
जब किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता दर्शाने के लिए उसकी समानता उस गुण में बढ़ी हुई किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उदाहरण – सीता का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।
स्पष्टीकरण – यहाँ सीता का मुख सुंदरता में चंद्रमा के समान दिखाया गया है। अतः उपमा अलंकार है।
उपमा अलंकार के अंग
उपमा के निम्नलिखित चार अंग होते हैं-
(1) उपमेय – जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं। जैसे- उपर्युक्त उदाहरण में ‘सीता’ उपमेय है।
(2) उपमान – जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमेय की समानता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं। जैसे- उपर्युक्त उदाहरण में ‘चंद्रमा’ उपमान है।
(3) समान धर्म – उपमेय और उपमान में जो गुण समान पाया जाता है, या जिस सामान्य गुण की समानता की जाती है, उसे समान धर्म कहते हैं। जैसे- ‘सुंदर’ समान धर्म है।
(4) वाचक शब्द – जिस शब्द-विशेष से समानता या उपमा का बोध होता है, उसे वाचक शब्द कहते हैं। उदाहरणतया- ‘के समान’ वाचक शब्द है। सा, सी, से, समान, सदृश, सम, सरिस, इमि, जिमि, ज्यों, जैसे आदि वाचक हैं।
उपमा अलंकार के भेद / उपमा अलंकार के प्रकार
(1) पूर्णोपमा अलंकार
जिस उपमा में चारों अंग उपस्थित रहते हैं, वहाँ पूर्णोपमा होती है। जैसे-
1. नील गगन सा शांत हृदय था हो रहा।
मैं समझ्यो निरधार, यह जग काँचौ काँच सौ
यहाँ पूर्णोपमा है। क्योंकि उपमा के चारों अंग वर्तमान हैं।
2. मोम सा तन घुल चुका
अब दीप सा मन जल चुका
उपमेय – तन, मन
उपमान – मोम दीप
वाचक – सा, सा
साधर्म्य – घुल चुका, जल चुका
यहाँ पूर्णोपमा है, क्योंकि उपमा के चारों अंग विद्यमान हैं।
पूर्णोपमा के अन्य उदाहरण
(1) पीपर पात सरिस मन डोला ।
(2) वह दीपशिखा-सी शांत भाव में लीन ।
(3) वह टूटे तरु की छुटी लता-सी दीन ।
(4) उषा-सुनहले तीर बरसती
जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई।
(5) मुख बाल-रवि-सम लाल होकर
ज्वाला-सा बोधित हुआ।
(6) चाटत रह्यौ स्वान पातरि ज्यौं, कबहूँ न पेट भरयो ।
(7) मज़बूत शिला-सी दृढ़ छाती ।
(8) बरसा रहा है रवि अनल
भूतल तवा-सा जल रहा।
(2) लुप्तोपमा अलंकार
जहाँ उपमा अलंकार के चारों अंगों (उपमेय, उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द) में से किसी एक अथवा दो अथवा तीन अंगों का लोप होता है, वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है।
लुप्तोपमा अलंकार चार प्रकार के होते हैं-
(i) धर्म-लुप्तोपमा– जिसमें साधारण धर्म का लोप हो; जैसे–’तापसबाला-सी गंगा।’ यहाँ धर्म-लुप्तोपमा है; क्योंकि यहाँ
‘सुन्दरता’ रूपी गुण का लोप है।
(ii) उपमान लुप्तोपमा–जिसमें उपमान का लोप हो;
जैसे- जिहिं तुलना तोहिं दीजिए, सुवरन सौरभ माहिं ।
कुसुम तिलक चम्पक अहो, हौं नहिं जानौं ताहिं ॥
अर्थात् सुन्दर वर्ण और सुगन्ध में तेरी तुलना किस पदार्थ से की जाए, उसे मैं नहीं जानता; क्योंकि तिलक, चम्पा आदि पुष्प तेरे
समकक्ष नहीं ठहरते। यहाँ उपमान लुप्त है; क्योंकि जिससे तुलना की जाए, वह ज्ञात नहीं है।
(iii) उपमेय- लुप्तोपमा —जिसमें उपमेय का लोप हो; जैसे-
-‘कल्पलता-सी अतिशय कोमल ।’ यहाँ उपमेय-लुप्तोपमा है;
क्योंकि ‘कल्पलता-सी कोमल’ कौन है, यह नहीं बताया गया है।
(iv) वाचक- लुप्तोपमा- जिसमें वाचक शब्द का लोप हो; जैसे-
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज-नयन।
यहाँ वाचक शब्द ‘समान’ या उसके पर्यायवाची अन्य किसी शब्द का लोप है; अत: इसमें वाचक-लुप्तोपमा अलंकार है।
लुप्तोपमा के अन्य उदाहरण
(क) उपमेय लुप्तोपमा-
(1) भोगी कुसुमायुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है।
(2) कमल के समान सुन्दर ।
यहाँ उपमेय को छोड़कर उपमा के तीनों अंग विद्यमान हैं।
(ख) धर्म लुप्तोपमा-
कुंद इंदु सम देह !
(ग) वाचक लुप्तोपमा-
तरुण अरुण वारिज नयन ।
अन्य उदाहरण –
(1) यह देखिए, अरविंद-से शिशुवृंद कैसे सो रहे । (समान-धर्म लुप्त)
(2) पड़ी थी बिजली-सी विकराल | (उपमेय लुप्त)
(3) कमल-कोमल कर में सप्रीत । ( वाचक शब्द लुप्त)
(3) मालोपमा अलंकार
साधारणत: किसी की तुलना एक ही उपमान से की जाती है, लेकिन जहाँ किसी उपमेय के लिये बहुत से उपमान लाए जाएं और वहाँ उनकी एक माला-सी तैयार हो जाय, वहाँ मालोपमा होती है-
उदाहरण – पन्नग-समूह में गरुड़ सदृश
तृण में विकराल कृशानु सदृश
राणा भी रण में कूद पड़ा
घन अन्धकार में भानु सदृश
यहाँ राणा प्रताप-एक उपमेय के लिये गरुड़, कृशानु (अग्नि) सभी का साधारण धर्म एक है-‘ कूद पड़ना ।’
उदाहरण – हिरनी से मीन से,सुखंजन समान चारु ।
अमल कमल- से, विलोचन तुम्हारे हैं ॥
उपर्युक्त पद में आँखों की तुलना अनेक उपमानों (हिरनी से, मीन से, सुखंजन समान, कमल से) से की गयी है। अत: यहाँ पर मालोपमा अलंकार है।
उपमा अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) नवल सुन्दर श्याम शरीर की, सजल नीरद सी कल कांति थी।
(2) वह कबूतर सी चुनरिया जब लहर जाती गगन में।
पंख आतुर फड़फड़ाता हंस सा अरमान में ।।
(3) वह नव-नलिनी से नयन वाला कहाँ है।
(4) मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला |
(5) निकल रही थी मर्म-वेदना, करुणा विकल कहानी-सी।
(6) हरिपद कोमल कमल से।
(7) नीलकमल से सुंदर नयन।
(8) रति सम रमणीय मूर्ति राधा की ।
(9) हाय फूल-सी कोमल बच्ची ।
हुई राख की थी ढेरी ।।
(10) सिंधु-सा विस्तृत और अथाह
एक निर्वासित का उत्साह ।
(11) तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
(12) प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे।
(13) असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
(14) खुले कोरे पृष्ठ जैसा
वही उज्ज्वल, वही पावन रूप ।
★★★ निवेदन ★★★
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