दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक विभिन्न अवस्थाओं में बालक का शारीरिक विकास / physical development of child in hindi है।
विभिन्न अवस्थाओं में बालक का शारीरिक विकास / physical development of child in hindi
शारीरिक विकास का अर्थ
मनोवैज्ञानिक को एवं क्रो के शब्दों में ‘मनुष्य सर्वप्रथम एक शारीरिक प्राणी है। उसकी शारीरिक संरचना, उसके व्यवहार व दृष्टिकोण का आधार है। अतः सभी पक्षों (शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था) में शारीरिक विकास का अध्ययन करना आवश्यक है।
शारीरिक विकास के अन्तर्गत शरीर के समस्त आंतरिक और बाह्य अंगों का विकास आता है, जैसे-शरीर की लम्बाई, भार, शारीरिक अनुपात अस्थियों का विकास, माँसपेशियों का विकास, आंतरिक अवयवों का विकास तथा शारीरिक स्वास्थ्य का अध्ययन आता है। शारीरिक विकास के अन्तर्गत यह भी देखा जाता है कि वे कौन-कौन से तत्व है जो शारीरिक विकास का प्रभावित करते हैं।
बालक का शारीरिक विकास मुख्यतः दो प्रकार से होता है-
1. शारीरिक रचना का विकास – इसके अन्तर्गत शरीर का आकार,भार, ऊँचाई, शारीरिक अंगों का शरीर के साथ अनुपात, हड्डियाँ, दाँत आदि का विकास सम्मिलित है।
2. शरीर-क्रियात्मक विकास – इसके अन्तर्गत तंत्रिका तंत्र (Nervous System), हृदय (Heart) और रुधिर तन्त्र (Circulatory System), श्वसन-तन्त्र (Respiratory System), पाचन तंत्र (Digestive System), मांसपेशियों (Muscles), अन्तःसावी ग्रन्थियों आदि का विकास सम्मिलित है।
भ्रूणावस्था में शारीरिक विकास (Physical development in embryo stage)
शुक्राणु तथा डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है-
(1) डिम्बावस्था-इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है तथा उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ हो जाता है।
(2) भ्रूणीय अवस्था-इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है। इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है और उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है। यह झिल्ली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में सहायता देती है। जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है। इसके पश्चात् शरीर का मध्य भाग एवं टाँगें और घुटने विकसित होने लगते हैं।
(3) भ्रूणावस्था-गर्भावस्था में द्वितीय माह से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रूणावस्था कहते हैं। तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 37. इंच लम्बा, 3/4 ओंस भारी होता है। दो माह के बाद 10 इंच लम्बा एवं भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवें माह तक लम्बाई 16 से 18 इंच, भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है। जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच के लगभग तथा भार 7 या 7.5 पौण्ड होता है। विकास की इसी अवस्था में त्वचा, अंग आदि बन जाते हैं और बच्चे की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती है।
शैशवावस्था में शारीरिक विकास (Physical development in infancy stage)
(1) भार
शैशवास्था में लड़कों का भार अधिक होता है।
जन्म के समय लड़कों का भार लगभग 7.15 पाउंड लड़कियों का भार लगभग 7.12 पाउंड होता है।
नवजात शिशु का भार लगभग 3 किग्रा होता है।
पहले 6 माह में शिशु का भार दुगुना और एक वर्ष के अन्त में तिगुना हो जाता है।
(2) लम्बाई
शैशवास्था में लड़कों की लम्बाई अधिक होती है।
बालक की लम्बाई-20.5 इंच तथा बालिका की लम्बाई-20.3 इंच (जन्म के समय) (लगभग)
प्रथम वर्ष के अन्त में वह 67 से 70 सेमी दूसरे वर्ष के अन्त तक 77 सेमी. से 82 सेमी. तक होती है तथा 6 वर्ष तक लगभग 100 सेमी. से 110 सेमी. लम्बा हो जाता है।
(3) मस्तिष्क
● मस्तिष्क का भार 350 ग्राम (शरीर के कुल लम्बाई का 1/4)
(4) हड्डियाँ
● नवजात शिशु मे हड्डियों की संख्या लगभग 270 होती है।
● सम्पूर्ण शैशवावस्था में ये छोटी, कोमल, लचीली होती हैं। हड्डियाँ कैल्शियम, फॉस्फोरस और अन्य खनिज लवणों की सहायता से मजबूत होती हैं।
(5) मांसपेशियाँ
● शिशु की मांसपेशी का भार उसके शरीर के कुल भाग का 23% होता है। यह भार धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। उसकी भुजाओं का विकास तीव्र गति से होता है। प्रथम दो वर्षों में भुजाएँ दुगुनी और टांगें डेढ़ गुनी हो जाती है। छ: वर्ष की आयु तक मांसपेशियों में लचीलापन होता है।
(6) दांत
दाँत निकलने की प्रक्रिया का आरम्भ गर्भावस्था से हो जाता है।
जन्म के समय शिशु के दाँत नहीं होते हैं।
5-6 माह में दूध के दाँत निकलना शुरू हो जाते हैं
1 वर्ष तक दाँतों की संख्या-8
4 वर्ष तक दूध के पूरे 20 दाँत (अस्थाई) निकल जाते हैं।
(7) दिल की धड़कन
जन्म के समय धड़कन -140 बार/मिनट
6 वर्ष के समय-100 बार/मिनट
जैसे-जैसे हृदय बड़ा होता है, धड़कन में स्थिरता आती जाती है।
(8) अन्य अंग
शिशु के आन्तरिक अंगों (पाचन अंग, फेफड़ा, स्नायु मंडल, रक्त
संचार अंग, जनन अंग और ग्रन्थियाँ) का विकास तीव्र गति से होता है। शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्ष विकास काल के होते हैं। अन्तिम तीन वर्षों में बच्चा मजबूती प्राप्त करता है।
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical development in childhood stage)
(1) भार
● बाल्यावस्था में लड़के एवं लड़की का भार लगभग बराबर होता है ।
● 9 या 10 वर्ष की आयु तक बालकों का भार बालिकाओं से अधिक
होता है। इसके बाद बालिकाओं का भार अधिक होना प्रारम्भ हो जाता है।
(2) लम्बाई
● बाल्यावस्था में दोनों की लम्बाई लगभग बराबर होती है। अगर अधिक तो बालिका की होती है।
● बाल्यावस्था में शरीर की लम्बाई कम बढ़ती है। इन सब वर्षों में लम्बाई 2 या 3 इंच ही बढ़ती है।
(3) सिर एवं मस्तिष्क
● मस्तिष्क का भार-1260 ग्राम
● बाल्यावस्था में मस्तिष्क आकार और तौल की दृष्टि से पूर्ण विकसितवहो जाता है। बाल्यावस्था में सिर के आकार में क्रमश परिवर्तन होता रहता है।
(4) हड्डियाँ
बाल्यावस्था में हड्डियाँ 270 से बढ़कर लगभग 350 हो जाती है।
इस अवस्था में मांसपेशियाँ धीरे-धीरे हड्डी का रूप धारण कर लेती है। इसी क्रिया को अस्थिकरण कहते हैं।
10-12 वर्ष की आयु में हड्डियों का दृढीकरण होता है।
(5) मांसपेशियाँ
●मासपेशियों का भार 8 वर्ष तक कुल भार का 27% हो जाता है।
●बालिकाओं की मांसपेशियाँ बालकों की अपेक्षा अधिक विकसित होती हैं।
(6) दाँत
5-6 वर्षों में नये दाँत निकलना शुरू
हो जाते हैं।
12-13 वर्षों तक दाँतों की संख्या 27-28 होती है।
12-13 वर्ष की अवस्था में स्थायी दाँत निकल आते हैं।
(7) दिल की धड़कन
12 वर्ष के समय-85 बार/मिनट
(8) अन्य अंगों का विकास
इस अवस्था में बच्चों के लगभग सभी अगों का पूर्ण विकास हो जाता है तथा वह अपनी शारीरिक गति पर नियंत्रण रखना सीख जाते हैं।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical development in adolescence stage)
(1) भार
शारीरिक भार में वृद्धि सबसे अधिक किशोरावस्था में ही होती है।
किशोरावस्था में लड़कों का भार अधिक होता है, क्योंकि लड़कों की हड्डियाँ अधिक मजबूत एवं भारी होती है। 11 से 14 वर्ष की बीच बालिकाओं का वजन समान आयु के लड़कों से अधिक हो जाता है। परन्तु 15 के बाद बालक, बालिकाओं की अपेक्षा भार में अधिक हो जाते हैं।
(2) लंबाई
किशोरावस्था में लड़कों की लम्बाई अधिक होती है।
लड़कियों की लम्बाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।
लड़कों की लम्बाई 18 वर्ष के बाद भी बड़ती है।
बालक 14 वर्ष की आयु तक अपनी लम्बाई का केवल 57 प्रतिशत ही वृद्धि कर पाते हैं जबकि बालिकायें इस समय तक अपनी लम्बाई का लगभग 90 प्रतिशत प्राप्त कर लेती हैं। लगभग 18 वर्ष के पश्चात लड़कियों की लम्बाई की वृद्धि रुक जाती है।
(3) मस्तिष्क
मस्तिष्क का भार 1260 से 1400 ग्राम
(4) हड्डियाँ
किशोरावस्था में 206 हड्डियाँ होती है।
सभी हड्डियों का पूर्णतः विकास इस अवस्था में हो जाता है।
अस्थियाँ जन्म के समय 270 होती हैं जो 14 वर्ष की आयु में बदकर 350 हो जाती हैं और फिर प्रौढावस्था में घटकर पुनः 206 रह जाती हैं क्योंकि छोटी और कोमल अस्थियाँ आपस में मिल जाती हैं जिससे उनकी संख्या कम हो जाती है। अस्थियों के विकास पर पौष्टिक भोजन और व्यायाम का प्रभाव पड़ता है।
(5) दाँत
किशोरावस्था में दाँतों का विकास समान रूप से नहीं होता है
किशोरावस्था के अन्त तक अथवा प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भ में 4 प्रज्ञादंत
(अक्लदंत) निकलते हैं।
कुल स्थाई दाँत – 12
कुल अस्थाई दाँत – 20 दाँत – 32
(6) शारीरिक अंगों का अनुपात
किशोरावस्था में पूर्ण शारीरिक विकास होने के कारण लगभग शरीर के सभी अंग अनुपात में आ जाते हैं। सिर, मुँह. भुजायें, पैर तथा धड़ सभी शारीरिक अवयव समुचित अनुपात ग्रहण कर लेते हैं फलस्वरूप किशोर प्रौद आकृति ग्रहण कर लेता है।
(7) त्वचा तथा बाल
इस अवस्था में चेहरे की बनावट में आश्चर्यजनक परिवर्तन आते हैं। बालिकाओं की त्वचा में निखार आ जाता है और बालकों के चेहरे पर दाढ़ी मूंछ आ जाने के कारण उनके चेहरे की कोमलता समाप्त हो जाती है।
(8) माँसपेशियों का विकास
इस अवस्था में माँसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। लगभग 15 वर्ष की आयु तक माँसपेशियों का वजन शरीर के वजन का 33 प्रतिशत हो जाता है। फिर प्रति वर्ष लगभग 11 प्रतिशत की वृद्धि होती है। मांसपेशियों का विकास शरीर को सुडौलता प्रदान करता है और भार में वृद्धि करता है।
(9) विभिन्न शारीरिक अंगों का विकास
शरीर के विभिन्न अंगों का विकास इस अवस्था में पूर्ण हो जाता है साथ ही वे अनुपात में आ जाते हैं। इवय बीस वर्ष की आयु तक पूर्ण विकसित हो जाता है। हड़ियाँ, माँसपेशियों, ज्ञानेन्द्रियाँ, फेफड़े जन्म की अपेक्षा बीस गुना अधिक बढ़ जाते हैं।
(10) दिल की धड़कन
इसमें धड़कन 72 बार/ मिनट
(11) आवाज परिवर्तन
गले की थायराइड ग्रन्थि के सक्रिय होने के कारण बालकों की आवाज में भारीपन तथा बालिकाओं की आवाज में कोमलता, मृदुलता तथा कभी-कभी धीमापन (Feeblencss) आ जाता है।
(12) विभिन्न ग्रन्थियों का प्रभाव
शरीर-रचना विशेषज्ञों का विचार है कि किशोरावस्था में इन परिवर्तनों का आधार ग्रन्थियाँ (Glands) होती हैं। इन ग्रन्थियों में गलग्रन्थि (Thyroid), उप-गलग्रन्थि (Paratyroid),उपवृक्क ग्रन्थियाँ (Adrenal Glands), पीयूष ग्रन्थियाँ (Pituitory) और प्रजनन ग्रन्थि (Gondas) प्रमुख हैं। इन ग्रन्थियों में से कुछ से आन्तरिक स्त्राव (Internal Secretion) और कुछ से बाह्य स्त्राव (Extertrnal Secretion) होता है। शारीरिक परिवर्तनों के कारण इन ग्रन्थियों से आन्तरिक एवं बाह्य स्राव होता है।
शारीरिक विकास के चक्र
(1) प्रथम चक्र (0-3 वर्ष) – विकास तीव्र गति से (शैशवास्था)
(2) द्वितीय चक्र (3-12 वर्ष) – विकास मन्द गति से (बाल्यावस्था)
(3) तृतीय चक्र (13-15 वर्ष) – पुनः तीव्रगति से (सबसे तेज) (पूर्व किशोरावस्था
(4) चतुर्थ चक्र (16-18वर्ष) – पुनः मन्द गति से (किशोरावस्था)
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Physical Development)
(1) वंशानुक्रम
(2) वातावरण
(3) पौष्टिक भोजन
(4) नियमित दिनचर्या
(5) विश्राम तथा निद्रा
(6) खेल तथा व्यायाम
(7) स्नेह तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार
(8) परिवार की स्थिति
निवेदन
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