वीर रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वीर रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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वीर रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वीर रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

वीर रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वीर रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

चलिए अब समझते है – वीर रस किसे कहते हैं,वीर रस के उदाहरण,वीर रस के सरल उदाहरण,वीर रस का स्थायी भाव,वीर रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वीर रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

वीर रस की परिभाषा

जहाँ शत्रु-प्रतिरोध, भव्य आयोजन, दान, दया आदि में पूर्ण
प्रसन्नता और गंभीर स्वीकारात्मक प्रयत्न का चित्रण हो वहाँ वीर
रस होता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है तथा इसका
सहायक गुण ओज होता है।

वीर रस के अवयव

1.स्थायी भाव – उत्साह
2.आलम्बन – शुत्र
3.आश्रय – नायक (वीर पुरुष)
4.उद्दीपन – युद्ध के बाजे
5.अनुभाव – अंगों का फड़कना रोमांच

नोट: रौद्र रस तथा वीर रस में क्रमशः स्थायी भाव क्रोध तथा
उत्साह का अंतर होता है। क्रोध में आँखों में फैलाव के साथ
लालिमा भी आ जाती है और संचारी भाव के रूप में उसमें
संकुचन भी आता है। उत्साह में आँखों में मात्र विस्तार आता है और
उसमें सादगी तथा गंभीरता से मुक्त उज्जवलता बनी रहती है।

वीर रस के उदाहरण एवं स्पष्टीकरण

उदाहरण – 1

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जय के दृढ़ विश्वास – युक्त थे दीप्तिमान जिनके मुख-मंडल |
पर्वत को भी खण्ड-खण्ड कर रजकण कर देने को चंचल ॥
फड़क रहे थे अति प्रचण्ड भुज-दण्ड शत्रु-मर्दन को विह्वल ।
ग्राम-ग्राम से निकल-निकलकर ऐसे युवक चले दल-के-दल ।

स्पष्टीकरण – रस- युद्ध वीर। स्थायी भाव-उत्साह । आश्रय-युवक। आलम्बन- शत्रु । अनुभाव-मुख का दीप्तिमय हो, भुजाओं का पड़कना। संचारी भाव-हर्ष, चपलता, आत्मविश्वास। जोश में भरना-

उदाहरण – 2

कालिय नाग को देखकर श्रीकृष्ण
स्व-जाति की देख अतीव दुर्दशा
विगर्हणा देख मनुष्य-मात्र की।
निहार के प्राणि-समूह को
हुए समुत्तेजित वीर-केसरी ॥
हितैषणा से निज जन्म-भूमि की
अपार आवेश ब्रजेश को हुआ।
बनी महा बंक गठी हुई भवें,
नितान्त विस्फारित नेत्र हो गये ॥

स्पष्टीकरण – रस-वीर। स्थायी भाव – उत्साह । आश्रय – श्रीकृष्ण । आलम्बन – कालिय नाग। उद्दीपन-स्वजाति की दुर्दशा, मनुष्य-मात्र की विगर्हणा, जन्मभूमि की हितैषणा। अनुभाव-भौंहों का बंकिम होना, नेत्रों का विस्फारित होना। संचारी भाव-हर्ष चपलता।

उदाहरण – 3

मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे ॥
हे सारथे? हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी ॥

स्पष्टीकरण – रस- युद्ध वीर । स्थायी भाव – उत्साह । आश्रय- अभिमन्यु । आलम्बन – द्रोण आदि कौरव-पक्ष के वीर। अनुभाव-अभिमन्यु का वचन । संचारी भाव-गर्व, हर्ष, उत्सुकता।

उदाहरण – 4

आये होंगे यदि भरत कुमति-वश वन में,
तो मैंने यह संकल्प किया है मन में
उनको इस शर का लक्ष चुनूँगा क्षण में,
प्रतिषेध आपका भी न सुनूँगा रण में ।

स्पष्टीकरण – इस पद में उत्साह स्थायी भाव है। लक्ष्मण आश्रय और भरत आलम्बन हैं। उनके वन में आगमन का समाचार उद्दीपन है। लक्ष्मण के वचन अनुभाव हैं। उत्सुकता, उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव हैं। इनसे पुष्ट उत्साह नामक स्थायी भाव वीर रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

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वीर रस के प्रकार एवं उदाहरण

युद्धवीर
मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा।
इस तरह भभकता राणा था, मानो सपोद्ध में गरुड़ पड़ा।

दान वीर
हाथ गह्यो प्रभु को कमला कहै नाथ कहाँ तुमने चित्त धारी।
तन्दुल खाय मुठी दुई दीन कियो तुमने दुइ लोक बिहारी ।।
खाय मुठी तिसरी अब नाथ कहा निज बास की आस बिसारी।
रंकहि आप समान कियो तुम चाहत आपहि होत भिखारी।।

धर्मवीर
तीय सिरोमनि सीय तजी, जेहि पावक की कलुषाई दही है।
धर्म धुरन्धर बन्धु तज्यों, पुर लोगनि की बिधि बोल कही है।
कीस, निसाचर की करनी न सुनी न विलोकति चित्त रही है।
राम सदा सरणागत की, अनखोही कनैसी सुभस सही है।

दया वीर
गीधराज सुनि आरतवानी, रघुकुल तिलक नारि पहिचानी।
अधम निसाचर लीन्हें जाई, जिमि मलेच्छ बस कपिला गाई ||
सीते! पुत्रि करसि जनि नासा, करिहौं जातुधान कर नासा।
धावा क्रोधवन्त खग कैसे, छूटे पवि पर्वत मँह जैसे।

वीर रस के अन्य उदाहरण

(1) रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ जाने वे उनको स्वर्ग धीर ।
पर फिरा हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन भीम वीर॥

(2) सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
    निज शत्रु को देखे बिना, उनसे तनिक न रहा गया।
    रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे।
     रणबाद्य भी निर्घोष करके धूम से बजने लगे।

(3) मैं सत्य कहता हूँ सखे ! सुकुमार मत जानो मुझे।
      यमराज से भी युद्ध को प्रसतुत सदा मानों मुझे ।।

(4) हाथ गह्यो प्रभु को कमला, कहै नाथ कहाँ तुमने चितधारी।
     तन्दुल खाई मुठि दुई दीन, कियो तुमने दुई लोक बिहारी।
    खाय मुठी तिसरी अब नाथ, कहा निज वास की आस भिखारी।।

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(5) बुंदेले हर बोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी।
     खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।





                          ★★★ निवेदन ★★★

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