करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

हिंदी व्याकरण विभिन्न परीक्षाओं जैसे UPTET,CTET, SUPER TET,UP POLICE,लेखपाल,RO/ARO,PCS,LOWER PCS,UPSSSC तथा प्रदेशों की अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी विषय है। हमारी वेबसाइट istudymaster.com आपको हिंदी व्याकरण के समस्त टॉपिक के नोट्स उपलब्ध कराएगी। दोस्तों हिंदी व्याकरण की इस श्रृंखला में आज का टॉपिक करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण है। हम आशा करते है कि इस टॉपिक से जुड़ी आपकी सारी समस्याएं समाप्त हो जाएगी।

करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

चलिए अब समझते है – करुण रस किसे कहते हैं,करुण रस के उदाहरण,करुण रस के सरल उदाहरण,करुण रस का स्थायी भाव,करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

करुण रस की परिभाषा

काव्य में किसी प्रिय व्यक्ति के शोक या उसकी संकटग्रस्तता,दीनता, मरण आदि से उत्पन्न होने वाली शोक नामक स्थायी भाव अथवा विभावादि की परिपक्व अवस्था को करुण रस कहा जाता है।

करुण रस के अवयव
1.स्थायीभाव – शोक
2.आलम्बन – प्रियजन का मृत शरीर, संकटग्रस्त या दीनता को
प्राप्त व्यक्ति
3.उद्दीपन – स्मृति को ताजा करने वाली वस्तुएँ
4.संचारी भाव  – निर्वेद, ग्लानि, चिन्ता, मोह, स्मृति, विषाद, दैन्य,
उन्माद,
5.अनुभाव – अश्रुपात, विलाप, वैवर्ण्य, शिथिलता, स्मृतिलोप,
रुदन, छाती या माथा मीटना, मूर्च्छा

करुण रस के उदाहरण एवं स्पष्टीकरण

उदाहरण – 1

अभिमन्यु की मृत्यु पर उत्तरा का विलाप-
प्रिय मृत्यु का अप्रिय महा संवाद पाकर विष-भरा ।
चित्रस्थ-सी, निर्जीव-सी, हो रह गयी हत उत्तरा ॥
संज्ञा-रहित तत्काल ही वह फिर धरा पर गिर पड़ी।
उस समय मूर्छा भी अहो! हितकर हुई उसको बड़ी ॥
फिर पीटकर सिर और छाती अश्रु बरसाती हुई।
कुररी-सदृश सकरुण गिरा से दैन्य दरसाती हुई ॥
बहुविधि विलाप प्रलाप वह करने लगी उस शोक में।
निज प्रिय-वियोग समान दुख होता न कोई लोक में ॥

स्पष्टीकरण – रस-करुण । स्थायी भाव-शोक । आश्रय – उत्तरा। आलम्बन – अभिमन्यु मृत्यु | अनुभाव-स्तम्भ, प्रलय (मूर्छा), सिर और छाती पीटना, अश्रु, रुदन, प्रलाप। संचारी भाव-जड़ता, मोह, दीनता । अतः यहाँ करुण रस है।

See also  रुचि एवं ध्यान का शैक्षिक महत्व / Educational Importance of Interest and Attention in hindi

उदाहरण – 2

सुदामा की दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण का व्याकुल होना-
पाँय बेहाल बिवाइन सों भये, कंटक-जाल लगे पुनि जोये ।
हाय ! महादुख पाये सखा ! तुम आये इतै न कितै दिन खोये।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुणा करिकै करुनानिधि रोये।
पानी परात को हथा छुयो नहिं, नैननि के जल सों पग धोये ॥

स्पष्टीकरण – रस- करुण । स्थायी भाव-शोक । आश्रय-कृष्ण। आलम्बन – सुदामा। उद्दीपन-सुदामा की दीन दशा, बिवाई और काँटों से भरे पैर। अनुभाव – अश्रु, सुदामा के प्रति उपालंभ भरा कथन । संचारी भाव-विषाद, पश्चात्ताप । अतः यहाँ करुण रस है।

उदाहरण – 3

सुनि मृदु बचन भूप-हिय सोकू ।
ससि कर छुअत विकल जिमि कोकू ॥
गयेउ सहमि, नहिं कहि कछु आवा ॥
जनु सचान वन झपटेउ लावा ॥
बिबरन भयेउ निपट महिपालू ।
दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू ॥
माथे हाथ, मूँदि दोउ लोचन ।
तनु धरि लाग सोचु जनु सोचन ॥

स्पष्टीकरण – रस-करुण। स्थायी भाव-शोक । आश्रय- दशरथ । आलम्बन – राम उद्दीपन- कैकेयी के वचन। अनुभाव- स्वर भंग, वैवर्ण्य, माथे पर हाथ रखना, नेत्र मूँदना । संचारी भाव-विकलता, सहमना, चिन्ता । अतः यहाँ करुण रस है।

उदाहरण – 4

जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना ||
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौ जड़ दैव जियावहिं मोही ||

स्पष्टीकरण – यहाँ लक्ष्मण की मूर्च्छा पर राम का विलाप प्रस्तुत किया गया है। शोक स्थायी भाव है। लक्ष्मण आलम्बन और राम आश्रय हैं।  राम के उद्गार अनुभाव हैं। हनुमान का विलम्ब उद्दीपन एवं दैन्य, चिन्ता, व्याकुलता, स्मृति आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट शोक नामक स्थायी भाव करुण रस दशा को प्राप्त हुआ है।

See also  व्याजस्तुति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / व्याजस्तुति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

करुण रस के अन्य उदाहरण

(1) धोखा न दो भैया मुझे इस भाँति आकर के यहाँ;
      मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ ?
      सीता गई तुम भी चले मैं भी न जीऊँगा यहाँ।
      सुग्रीव बोले साथ में सब जाएँगे बानर वहाँ ?

(2) हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक ।
     गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक।।

(3) धोखा न दो भैया मुझे, इस भाँति आकर के यहाँ
       मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ ?
       सीता गई तुम भी चले मैं भी न जीऊँगा यहाँ ।
       सुग्रीव बोले साथ में सब जाएँगे बानर वहाँ?

(4) अर्ध राति गयी कपि नहिं आवा। राम उठाइ अनुज उर लावा ॥
   सकइ न दुखित देखि मोहि काऊ। बन्धु सदा तव मृदुल स्वभाऊ ॥
   जो जनतेॐ वन बन्धु बिछोहु । पिता वचन मनतेऊँ नहिं ओहु ॥

(5)  ऐसे विहाल विवाइन सो पगु, कंटक जाल लगे पुनि जोये।
      हाय महादुःख पाय सखा, तुम आये इतै न कितै दिन खोये ।।
    देखि सुदामा की दीन दशा, करूणा करिकै करूणानिधि रोये।
    पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल से पग धोये ।।

(6) हाय राम! कैसे झेले हम अपनी लज्जा अपना शोक,
       गया अपने ही हाथों से अपना राष्ट्रपिता परलोक ।

(7) सो अनुराम कहो अब भाई, उठहु न सुनि मम बच विकलाई।
     जैहऊँ अवध कवन मुँह लाई, नारि हेतु प्रिय भ्रात गँवाई।

(8) मन की उतप्त वेदना मन की मन में बहती थी।
     चुप रहकर अन्तर्मन में, कुछ मौन व्यथा कहती थी ।।

See also  लिंग की परिभाषा एवं प्रकार / लिंग के प्रयोग एवं नियम

(9) शोक विकल सब रोवहिं रानी । रूप शील बल तेज बखानी।।
      करहिं विलाप अनेक प्रकारा । परहिं भूमि तल बारहिं बारा ।।





                           ★★★ निवेदन ★★★

दोस्तों हमें कमेंट करके बताइए कि आपको यह टॉपिक करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण कैसा लगा। आप इसे अपने तैयारी कर रहे अपने मित्रों के साथ शेयर भी कीजिये ।

Tags – करुण रस की परिभाषा व उदाहरण,करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित समझाइए,करुण रस की परिभाषा और उदाहरण,karun ras in hindi,करुण रस की परिभाषा एवं उदाहरण / करुण रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण








Leave a Comment