वात्सल्य रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वात्सल्य रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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वात्सल्य रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वात्सल्य रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

वात्सल्य रस की परिभाषा एवं उदाहरण / वात्सल्य रस के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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वात्सल्य रस की परिभाषा

काव्य में जहाँ शिशु या छोटे बालकों के प्रति जाग्रत स्नेह के प्रसंग,
दृश्य या भाव का चित्रण हो वहाँ वात्सल्य रस होता है। सन्तान के प्रति स्नेह भाव वात्सल्य कहा जाता है। यही वात्सल्य भाव विभावादि के संयोग से ‘वात्सल्य’ की व्यंजना करता है।

वात्सल्य रस के अवयव

1.स्थायी भाव – वात्सल्य
2.आलंबन – पुत्र या सन्तान
3.आश्रय – माता-पिता
4.उद्दीपन – सन्तान के क्रियाकलाप

वात्सल्य रस के उदाहरण एवं स्पष्टीकरण

उदाहरण – 1
यशोदा हरि पालने झुलावै ।
हलरावै दुलरावै जोइ-सोई कुछ गावै ।
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगै,
कब धरनि पग दै धेरै ।

स्पष्टीकरण – रस- वात्सल्य । स्थायी भाव-पुत्र के प्रति स्नेह । आश्रय-माता यशोदा । आलम्बन – पुत्र श्रीकृष्ण उद्दीपन- बालक की चेष्टाएँ। अनुभाव-बालक को पालने झुलाना, लोरी गाना। संचारी भाव-हर्ष, आवेग आदि। अतः यहाँ पर वात्सल्य रस है।

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उदाहरण – 2
हरि अपने रँग में कछु गावत ।
तनक- तनक चरनन सों नाचत, मनहिं मनहिं रिझावत ॥
बाँगि उँचाइ काजरी-धौरी गैयन टेरि बुलावत ।
माखन तकन आपने कर ले तनक बदन में नावत ॥
कबहुँ चितै प्रतिबिंब खंभ में लवनी लिये खवावत।
दुरि देखत जसुमति यह लीला हरखि अनन्द बढ़ावत ॥

स्पष्टीकरण – रस- वात्सल्य । स्थायी भाव-स्नेह (वात्सल्य) । आश्रय-यशोदा। आलम्बन-बालक कृष्ण। उद्दीपन-कृष्ण का गाना, नाचना, बाँह उठाकर गायों को बुलाना, मुँह में माखन डालना, प्रतिबिंब को माखन खिलाना। अनुभाव- यशोदा का छिपकर देखना। संचारी भाव-हर्ष आदि । अतः यहाँ पर वात्सल्य रस है।

वात्सल्य रस के प्रकार

1.संयोग वात्सल्य रस
2.वियोग वात्सल्य रस

1.संयोग वात्सल्य रस : काव्य में जब बालकों की ऐसी बातों का
वर्णन होता है, जो उनके माता-पिता आदि के पास उपस्थित रहने
के काल से सम्बंध रखती है, तो उसे संयोग वात्सल्य रस कहा
जाता है।

जैसे-
वर दन्त की पंगति कुन्दकली अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की॥
घुँघरारि लटैं अटकै मुख ऊपर कुण्डल लोल कपालन की।
निवछावर प्राण करें तुलसी बलि जाऊँ लला इन बेलन की ॥

2.वियोग वात्सल्य रस – काव्य में जब बालकों के माता-पिता
आदि से अलग हो जाने से उनके या उनके कारण माता-पिता की
दशा का वर्णन होता है, तब वियोग वात्सल्य रस होता है।

जैसे-
संदेश देवकी सों कहिए।
हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो ।
तुक तौ टेव जानितिहि है हो तउ, मोहि कहि आवै।
प्रात उठत मेरे लाल लड़ैतहि माखन रोटी भावै ॥

वात्सल्य रस के अन्य उदाहरण

(1) कबहुँ पलक हरि मूँद लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है रहि-रहि करि-करि सेन बतावै।
इहि अंतर अकुलाय उठै हरि जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंदभामिनि पावै।

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(2) यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै जोइ-सोई कुछ गावै॥
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगे,
कब धरनि पग दै धरै॥

(3) कान्ह घुटुरुवनि आवत।
    मनिमय कनक नंद के आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत॥

(4) मैया कबहु बढ़ेगी चोटी
   कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी। ।

(5) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों। ।

(6) मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
    बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ। ।

                         ★★★ निवेदन ★★★

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